Baudh dharm बौद्ध धर्म

                         बौद्ध धर्म                                    
     
इतिहास में छठवीं शताब्दी धर्म सुधार आंदोलन के लिए प्रसिद्ध है, वास्तव में यह का हाल महान दार्शनिकों के विचारों का काल था। इसी काल में भारत में दो नए प्रबल धर्म सामने आए जिनमें प्रथम बौद्ध धर्म तथा दूसरा जैन धर्म, इन दोनों धर्मों के सामने आने का कारण वैदिक सनातन धर्म में अनेक खामियों के कारण बौद्ध धर्म और जन धर्म के रूप में सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलन का भारत की धरा पर आगाज हुआ।                                                               

 गौतम बुद्ध का जीवन।   गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु के समीप लुंबिनी ग्राम में हुआ था। गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था, सिद्धार्थ के पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु के सांप के गण के प्रधान थे। उनकी माता का नाम महामाया था, सिद्धार्थ के जन्म के समय ही ज्योतिषियों ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह बालक एक चक्रवर्ती राजा या महान सन्यासी बनेगा। सिद्धार्थ के जन्म के 1 सप्ताह के अंदर ही उसकी माता की मृत्यु हो गई, तब बालक सिद्धार्थ का लालन-पालन उसकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया। सिद्धार्थ का लालन-पालन राज्य वातावरण में हुआ उन्होंने राजकुमारों की तरह शिक्षा ग्रहण की उनके रहने के लिए अलग-अलग मौसम के लिए रहने योग्य महल इत्यादि बनाए गए थे, यह इस बात के सूचक थे कि सिद्धार्थ का रहन सहन कितने वैभव और विलास के साथ हो रहा था। सिद्धार्थ को हमेशा राग रंग में बांधे रखने का प्रयास किया गया इसी उद्देश्य को देखते हुए सिद्धार्थ का विवाह 16 वर्ष की आयु में यशोधरा नामक सुंदरी से किया गया, जिससे सिद्धार्थ को राहुल नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ परंतु सिद्धार्थ सांसारिक जीवन में वास्तविक संतोष को नहीं पा रहा था। एक बार की घटना है कि वहां अपने राज्य में घूमते हुए कहीं जा रहे थे कि उन्हें सर्वप्रथम एक वृद्ध, दिखाई दिया कुछ दूर जाने पर एक ऐसा व्यक्ति दिखाई दिया जो बहुत सारी व्याधियों से ग्रसित था कुछ दूर जाने के पश्चात सिद्धार्थ को एक मृतक व्यक्ति दिखाई दिया जिसे देख कर वह समझ नहीं पा रहे थे कि किस प्रकार से सांसारिक जीवन में मानव अलग-अलग दुखों को सहता है वह कुछ और आगे बढ़े तो उन्हें एक बहुत ही प्रसन्न चित्त सन्यासी दिखाई दिया यह सब देखकर सिद्धार्थ का मन बहुत दुखी हुआ।मनुष्य का उम्र के साथ वृद्ध होना,उसके शरीर का कमजोर होना और अंतिम में मृत्यु को प्राप्त करना यह सब सिद्धार्थ के लिए बहुत सोचनीय तथ्य थे,इनके राज जानने के लिए उनका मन अधीर हो उठा और 29वर्ष की अवस्था में अपनी पत्नी और बच्चे को सोता हुआ छोड़कर अपने सांसारिक जीवन का त्याग किया। इसी त्याग को बौद्ध ग्रंथों में"महाभिनिष्क्रमण"कहां गया है।


सांसारिक जीवन को त्याग कर सिद्धार्थ कपिलवस्तु को छोड़कर जीवन की सत्यता की खोज में निकल पड़े। उन्होंने वैशाली के सुविख्यात आचार्य"आला र कलाम "से ज्ञान प्राप्त किया परंतु उनकी जिज्ञासा इस ज्ञान से शांत नहीं हो पाई।

                 राजगृह से कुछ निकट उरुवेला के सघन वन क्षेत्र में सिद्धार्थ ने अपने चार उपासक को के साथ कठोर तपस्या आरंभ की। कठिन तपस्या तथा और जल का त्याग करने से उनका शरीर बहुत कमजोर और सूख गया था, परंतु मन में कुछ जानने की चाह ने उनकी साधना बनाए रखी, परंतु समय के बीत जाने पर सिद्धार्थ को अपने मन में यह बात जानने में जरा भी देरी नहीं लगी की यह  मार्ग ज्ञान की खोज के लिए सही नहीं है, अतः उन्होंने सुजाता नाम की स्त्री के हाथों से खीर खाकर अपनी तपस्या को समाप्त कर दिया। इन सब घटनाक्रम मेंं वह सिद्धार्थथ से गौतम हो चुके थे। अचानक गौतम केे   अपनी आराधना को त्यागने के उनकेेे कुछ साथी उन्हें छोड़कर चले गए। इसकेेे बाद गौतम गया की ओर निकल पड़े । और 

वट वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान करने लगे। समाधि लेने केेे 8 दिन पश्चात 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा के दिन 19 सच्चे ज्ञान की प्राप्त हुई और वह बुद्ध कहलाए।

             

              ज्ञान प्राप्ति के पश्चात गौतम बुद्ध अपने विचारों को लोगों तक पहुंचाने के लिए निकल पड़े सर्वप्रथम उन्होंने अपना उपदेश सारनाथ के ऋषि पत्तन में उन पांच साथियों को दिया जो उन्हें छोड़कर उन्हें पाखंडी सोच कर चले गए थे। इन पांचों शिष्यों को ही पंच वर्गीय कहा जाता है तथा इस घटना को "धर्म चक्र प्रवर्तन"के नाम से जाना जाता है।


            अपने प्रथम उपदेश के पश्चात गौतम बुद्ध ने संघ की स्थापना की। बुद्ध ने संघ केेे सदस्य को धर्म के प्रचार के लिए आदेशित किया और खुद भी धर्म के प्रचार के लिए जाने लगे, राजगृह में उनके प्रचार का सर्वप्रथम  विरोध हुआ धीरे-धीरेेे बुद्ध के शिष्यों की संख्या बढ़ने लगी और उनके विचारों में लोगोंं को सत्यता का भान हुआ। बिंबिसार जो कि मगध का राजा था सर्वप्रथम उनकेे द्वारा बुद्ध से प्रभावित होकर बुद्ध धर्म को स्वीकार किया गया। मगध के अतिरिक्त कोसल इत्यादि जगहों में भी बुद्ध ने अपनेे धर्म का प्रचार किया। बुद्ध ने सबसे अधिक उपदेश श्रावस्ती (कोसल) मैं दिए।


                     बुद्ध के द्वारा प्रति दिवस भ्रमण करते हुए, मानव जीवन को सुखमय और समृद्ध बनाने का संदेश दिया जाता। धर्म प्रचार के पांचवें वर्ष बुद्ध के प्रिय शिष्य आनंद के आग्रह पर गौतम बुद्ध ने महा प्रजापति गौतमी को अपने संघ की प्रथम भिक्षुणी बनाया। बुद्ध के ज्ञान से प्रभावित होकर उस समय के कई शासक बिंबिसार, अजातशत्रु, प्रसनजीत आदि बुद्ध के अनुयाई के रूप में सामने आए। अपने जीवन के अंतिम काल में बौद्ध धर्म का प्रचार करते हुए उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में 80 वर्ष की अवस्था में बुद्ध ने निर्वाण को प्राप्त किया। बुद्ध बुद्ध के जीवन की इस अंतिम घड़ी को महानिर्वाण कहा गया। 


        गौतम बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाएं


1- गृह त्याग की घटना-गौतम बुद्ध के जीवन की गृह त्याग की घटना,"महाभिनिष्क्रमण"कहलाती है।

2-ज्ञान प्राप्ति की घटना- गौतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति की घटना को इतिहास में संबोधी के नाम से जाना जाता है।

3-प्रथम उपदेश की घटना- बुद्ध के द्वारा दिए गए प्रथम उपदेश को इतिहास में धर्म चक्र प्रवर्तन के नाम से जाना जाता है।

4-निर्वाण- बुद्ध के जीवन काल की सबसे अंतिम घटना जिसे भारतीय इतिहास में महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता हैं।


             प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान एवं दार्शनिक 

 अश्वघोष   कवि, नाटककार, संगीतकार, विद्वान एवं तर्क शास्त्री थे। अश्वघोष के द्वारा बुद्ध चरित्र की रचना एक महाकाव्य के रूप में की गई उन्होंने बुद्ध के ज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए अनेक ग्रामों की यात्राएं की और देश के विभिन्न भागों में बौद्ध धर्म का प्रचार किया अश्वघोष कनिष्क के समकालीन माने जाते थे।


                   


  नागार्जुन    बौद्ध दर्शन के माध्यमिक विचारधारा का प्रतिपादन किया जिसे"शुन्यवाद " के नाम से जाना जाता है। यह आंध्र के  राजा यज्ञ श्री गौतमीपुत्र के मित्र और उनके समकालीन थे।

 असंग   वसुबंधु के भाई और पंजाब के प्रसिद्ध  बौद्ध अनुयाई थे। असंग अपने गुरु मैत्रेय नाथ द्वारा स्थापित योगाचार्य विज्ञान वाद संप्रदाय के प्रसिद्ध आचार्य थे।

 वसुबंधु  वसुबंधु की महान कृति अभि धम्म कोश है ।जो बौद्ध धर्म का विश्वकोश माना जाता है।


                 बौद्ध महासंगीतिया     

प्रथम बौद्ध संगीति- बौद्ध धर्म का यह प्रथम सम्मेलन 483 ईसा पूर्व को राजगृह में अजातशत्रु के शासनकाल में हुआ जिसके अध्यक्ष महा कश्यप थे। इस प्रथम सम्मेलन में बुद्ध के उपदेशों को दो पिटको विनय एवं सुत् पिटक में संकलित किया गया। 

  द्वितीय बौद्ध संगीति  बौद्ध धर्म का यह दूसरा सम्मेलन 383 ईसा पूर्व में वैशाली में संपन्न हुआ उस समय वैशाली के शासक"कालाशोक"तथा संगति की अध्यक्षता सबाकामी के द्वारा की गई थी। दूसरे बौद्ध सम्मेलन में अनुशासन को लेकर मतभेद के कारण बौद्ध धर्म स्थविर तथा महासघिक में बट गया।


 तृतीय बौद्ध संगीति  तृतीय बौद्ध सम्मेलन पाटलिपुत्र में जोकि मगध की राजधानी थी तथा वहां के शासक अशोक थे। इस संगीति के अध्यक्षता मोगली पुत तिस् के द्वारा की गई। इस तीसरी संगति में तीसरा पिटक अभिधम्मा जोड़ा गया। 

 चतुर्थ बौद्ध संगीति   बौद्ध धर्म का चतुर्थ सम्मेलन प्रथम शताब्दी में कश्मीर के कुंडल वन में कनिष्क जो कि कुषाण वंश के शासक थे। इस संगीति के अध्यक्ष वसुमित्र थे। तथा इस संगीति में बौद्ध धर्म दो संप्रदायों में विभाजित हुआ जिनका नाम हीनयान एवं महायान पड़ा।


         बौद्ध धर्म के अष्टांगिक मार्ग       

बौद्ध धर्म के सिद्धांत में 8 मार्च ऐसे बतलाए गए हैं जिससे मानव का जीवन सुखमय और सरल होता है जो निम्न प्रकार से है-1 सम्यक दृष्टि 2 सम्यक संकल्प 3 सम्यक वाणी 4 सम्यक कर्म 5 सम्यक आजीविका 6 सम्यक व्यायाम 7 सम्यक् स्मृति 8 सम्यक समाधि इन 8 मार्गों पर चलकर मनुष्य अपने जीवन को अवश्य सुखमय और सरल बनाएगा यह मार्ग बौद्ध धर्म में बतलाया गया है। 


           बौद्ध धर्म से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य 

1-महात्मा बुद्ध के अनुयाई चार भागों में विभक्त थे पहला भाग भिक्षु संघ दूसरा भाग भिक्षुणी संघ तीसरा भाग उपासक संघ और चौथा भाग उपासिका संघ का होता था।

2-बौद्ध धर्म का सर्वाधिक प्रचार कौशल राज्य में हुआ तथा यहीं पर सर्वाधिक बौद्ध धर्म के अनुयाई थे।

3-महात्मा बुद्ध अनातमावादी थे, लेकिन पुनर्जन्म में विश्वास करते थे।

4-बौद्ध संघ में लाए गए प्रस्ताव पाठ को अनु सावन कहा जाता था।

5-कमल तथा सांड बुद्ध के जन्म का, घोड़ा गृह त्याग का, पीपल पीपल ज्ञान का, पदचिन्ह निर्वाण का एवं स्तूप मृत्यु का प्रतीक है।
6-पाल शासक के काल में बौद्ध धर्म में तंत्र वाद का विकास हुआ।
7-आजीविक संप्रदाय के अनुयाई अशोक वृक्ष को ईश्वर के रूप में पूजा करते थे तथा अपने हाथों में मोर पंख का गुच्छा रखते थे।
8-सन 1956 में बुद्ध के महापरिनिर्वाण की 2500 वी जयंती मनाई गई थी।
9-चंद्रगोमिन बौद्ध जगत में एक व्याकरण आचार्य, दार्शनिक और कवि के रूप में महान ख्याति प्राप्त है।
10-जातक कथाओं की संख्या लगभग 500 है।

11-बौद्ध धर्म की पवित्र दिशा दक्षिण मानी जाती थी।
12-बौद्ध धर्म का प्रचार पाली भाषा में किया गया।
13-बौद्ध ग्रंथों में संस्कृत का प्रयोग अभी धाम पिटक से प्रारंभ होता है।
14-बौद्ध धर्म के अनुसार इच्छा सब कष्टों का कारण है।
15-निर्वाण बौद्ध धर्म का सबसे उत्तम लक्ष्य है जिसका अर्थ है दीपक का बुझ जाना अर्थात जीवन मरण के चक्र से दूर हो जाना।
16-बुद्ध को तथागत तथा साक्यमुनि नामों से भी जाना जाता है
17-महात्मा बुद्ध ने सर्वप्रथम उरुवेला में तपस्या की थी।
18-बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं जातक कथाएं शुद्ध पटक में वर्णित है।
19-वज्रयान संप्रदाय का उदय सातवीं शताब्दी में हुआ था।
20-वज्रयान बौद्ध धर्म में बढ़ते तंत्र मंत्र के प्रभाव का परिणाम था।
21-नालंदा तथा विक्रमशिला विश्वविद्यालय बौद्ध शिक्षा के प्रमुख केंद्र हुआ करते थे।

              इस प्रकार से बौद्ध धर्म के सिद्धांत पूरी दुनिया में फैल कर मानव जीवन को एक नई दिशा दिखा रहे हैं, भगवान बुद्ध ने भारत की धरा पर जन्म लेकर भारत ही नहीं समूचे विश्व को शांति का संदेश दिया है, वर्तमान समय में जब समूचा विश्व हिंसा और एक दूसरे के आमने-सामने हैं ऐसी विषम परिस्थिति में सिर्फ और सिर्फ बौद्ध धर्म के सिद्धांत ही समूचे विश्व को शांति की ओर ले जाकर पूरे विश्व को एक सूत्र में बांधकर पुनः इस धरा को शांति प्रदान कर सकते हैं।,,,



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