प्राचीन भारत के इतिहास की उपयोगिता प्राचीन भारत के इतिहास का मंथन कई दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इससे हम जानते हैं कि मानव समुदाय ने हमारे देश में प्राचीन संस्कृतियों का विकास कब, कहां और कैसे किया।इससे पता चलता है कि उन्होंने कृषि की शुरुआत कैसे की जिससे कि मानव का जीवन सुरक्षित और स्थिर हुआ।इससे यह ज्ञात होता है कि प्राचीन भारत के मानव ने किस तरह से प्राकृतिक संपदा ओं की खोज की और उनका उपयोग किया, तथा किस प्रकार उन्होंने अपनी जीविका के साधनों की खोज की। हम यह भी जान पाते हैं कि उन्होंने फसल उत्पादन, कताई, बुनाई, धातु कर्म आदि की शुरुआत कैसे की, कैसे जंगलों की सफाई की और कैसे ग्रामों नगरों तथा राज्यों की स्थापना की। कोई समुदाय तब तक सभ्य नहीं समझा जाता है जब तक वह लिखना न जानता हो।आज भारत में जो विभिन्न प्रकार की लिपिया प्रचलन में है उन सबका विकास प्राचीन लिपियों से हुआ हमारी आज की भाषाओं का भी वही हाल है। हमारी वर्तमान भाषाओं की जड़े अतीत में है और वह कई युगों में विकसित हुई है। अनेकता में एकता भारत कि निशानी -प्राचीन भारत का इतिहास बड़ा रोचक है क्योंकि यहां अनेकानेक मानव प्रजातियों कााा संगम हुुआ है। प्राचीन आर्य, भारतीय आर्य, यूनानी, शक, hunऔर तुर्क आदि अनेक प्रजातियों ने भारत को अपना घर बनाया। हर प्रजाति ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था, शिल्पकला, और साहित्य के विकाास में अपना योगदान दिया। प्राचीन भारतीय संस्कृति की एक विशेषता रही है कि उसमेंंंं उत्तर और दक्षिण के पूर्व और पश्चिम के सांस्कृतिक उपादान समेकित हो गए हैं। आर्य जातीय उपादान उत्तर केेेे वैदिक संस्कृति अंग है prak आर्य जातीय उपादान दक्षिण की द्रविड़ और तमिल संस्कृति के। लेकिन द्रविड़़़और संस्कृत भाषाओंं के शब्द उन वैदिक ग्रंथों में भी पाए जाते हैं जिनका काल 1500-500 ईसा पूर्व के बीच बताया जाता है। यह शब्द प्रायद्वीपीय एवं वैदिक उत्तर भारत से संबंध भावनाओं, संस्थाओं उत्पादन ओ और निवासियों के पर्याय है। इसी प्रकार पाली और संस्कृत के बहुत शब्दद जो गंगाा के मैदानोंों मे विकसित भावनाओं और संस्थाओं केेे पर्याय है। भारत प्राचीन काल सेे ही विविध धर्मोंं का प्रांगण रहा है। प्राचीन भारत में हिंदू जैन और बौद्ध धर्म का उदय हुआ,परंतु इन सभी धर्मों और संस्कृतियों का पारस्परिक सम्मिश्रण और प्रभाव इस प्रकार हुआ सभी लोग भले ही भिन्न भाषाएं बोलते, भिन्न भिन्न धर्मों को मानते और भिन्न-भिन्न्न सामाजिक रीति रिवाजों पर चलते हो, पर सारे देश में सभी एक ही जीवन पद्धति से निवास करते हैं। हमारे देश में विविधताओं के बावजूद भीतर से गहरी एकता झलकती है। प्राचीन भारत के लोग एकता के लिए प्रयत्नशील रहे। उन्होंनेेे इस विशाल उपमहाद्वीप को एक अखंड देश समझा।सारे देश को भारत नामक एक प्राचीन वंश के नाम पर भारतवर्ष नाम दिया गया। ईसा पूर्व तीसरी सदी में अशोक ने अपने साम्राज्य सुदूर दक्षिण को छोड़ सारे देश में फैलाया। फिर ईशा की चौथी सदी में समुद्रगुप्त की विजय पताका गंगा की घाटी से तमिल देश के छोर तक पहुंची।सातवीं सदी में चालू के राजा पुलकेशिन ने हर्षवर्धन को हराया जो संपूर्ण उत्तर भारत का अधिपति माना जाता था। राजनैतक एकता के अभाव की स्थिति में भी सारे देश में राजनैतिक ढांचा एक जैसा रहा। विजेताओं और सांस्कृतिक नेताओं के मन में भारत का भान एक अखंड भूमि के रूप में ही हुआ है। भारत कि इस एकता को विदेशियों ने भी सकारा है वह सर्वप्रथम सिंधु तट वासियों के संपर्क में आए और इसलिए उन्होंने पूरे देश को ही सिंधु सभ्यता नाम दे दिया। हिंदू शब्द संस्कृत सिंधु से निकला है कालक्रम के चलते यह देश इंडिया के नाम से मशहूर हुआ जो इसके यूनानी पर्याय के बहुत निकट है, यह फारसी और अरबी भाषाओं में हिंदू नाम से विदित हुआ। देश में भाषा तमक और सांस्कृतिक एकता स्थापित करने के लिए भी निरंतर प्रयास होते रहे हैं। ईसा पूर्व तीसरी सदी में प्राकृत देश भर की संपर्क भाषा(ligua freka) का काम करती थी सारे देश के प्रमुख भागों में अशोक के शिलालेख प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे। बाद में वह स्थान संस्कृत में ले लिया और देश के कोने-कोने में राजभाषा के रूप में प्रचलित रही। यह सिलसिला ईशा की चौथी सदी में आकर गुप्त काल में और भी मजबूत हुआ यद्यपि गुप्त काल के बाद देश अनेक छोटे-छोटे राज्यों में बढ़ गया फिर भी राजकीय दस्तावेज संस्कृत में ही लिखे जाते रहे। एक और बात यह है कि प्राचीन महाकाव्य रामायण और महाभारत तमिलों के प्रदेश में भी वैसे ही आदर और भक्ति भाव से पढ़े जाते थे जैसे काशी और तक्षशिला की पंडित मंडलियों में। इन दोनों महाकाव्य की रचना मूलतः संस्कृत में हुई थी बाद में उन्हें विभिन्न स्थानीय भाषाओं में भी प्रस्तुत किया गया। परंतु भारत के सांस्कृतिक मूल्य और चिंतन चाहे जिस किसी भी रूप में प्रस्तुत किए जाए, उनका सार सारे देश में एक जैसा रहा है। वर्तमान में अतीत कि उपयोगिता -आधुनिक काल में हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनके संदर्भ में भारत के अतीत का अध्ययन विशेष सार्थक सिद्ध होता है। कुछ लोग प्राचीन सभ्यता को फिर से जगाने के लिए आवाज उठा रहे है, ओर भारत के उज्जवल अतीत पर मुग्ध है। यह कला कौशल की प्राचीन वस्तुओं के संरक्षण की चेतना से भिन्न बात है। वास्तव में वे जो बतलाना चाहते हैं वह है समाज और संस्कृति का पुराना प्रतिमान। ऐसी स्थिति में अतीत को ठीक सेे समझना जरूरी है। बेशक भारत के लोगों ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रोंं मे कीर्ति स्थापित की, पर केवल अतीत की कृति केे बल पर ही हम आज के ज्ञान विज्ञान की उपलब्धियों का मुकाबला नहीं कर सकते हैं। हम इस बात से इंकार नहींंं कर सकते की प्राचीन भारतीय समाज सामाजिक न्याय से मुक्त नहीं था। भारत मेंं सभ्यता के विकास की धरा इस सामाजिक भेदभाव की वृद्धि के साथ साथ चली है। अतः प्राचीन भारत का इतिहास केवल उन्हीं लोगों के लिए प्रासंगिक नहींं है जो जानना चाहते है कि प्राचीन अतीत का वह उज्जवल स्वरूप क्या है जिसे कुछ लोग पूर्ण रूप से परिवर्तन करनााा चाहते हैं, बल्कि उन लोगों के लिए भी है जो देश की प्रगति में रोक डालने वाले तत्वों को पहचाानना चाहते है।
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