Jain dharm जैन धर्म

                     जैन धर्म Jain dharm 

  जैन धर्म का अवतरण - छठी शताब्दी ईसा पूर्व का भारतीय इतिहास में महत्व इसलिए बढ़ जाता है, क्योंकि छठी शताब्दी में वैदिक धर्म के विरुद्ध जो आंदोलन छेड़े गए, उसके फल स्वरूप भारत में जो नई धार्मिक क्रांति आई उनमें से जैन धर्म अपना अति महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

         वर्धमान महावीर का जन्म 540 ईसा पूर्व में वैशाली के पास किसी गांव में हुआ। वैशाली की पहचान उत्तर बिहार में इसी नाम से नव स्थापित जिले के बसाढ से की गई है।उनके पिता सिद्धार्थ ए क्षत्रिय कुल के प्रधान थे। उनकी माता का नाम त्रिशाला था जो बिंबिसार के ससुर लिच्छवी नरेश चेतक की बहन थी।इस प्रकार महावीर के परिवार का संबंध मगध के राजपरिवार से था उच्च फूलों से संबंध के कारण अपने धर्म प्रचार के क्रम में उन्हें राजा और राज सचिवों के साथ संपर्क करना आसान हुआ।



              महावीर स्वामी से जुड़ी मुख्य बातें  

सिद्धार्थ - महावीर स्वामी के पिता का नाम।
त्रिशला - महावीर स्वामी की माता का नाम।
यशोदा - महावीर स्वामी की पत्नी।
प्रियादार्शना - महावीर स्वामी की पुत्री।
जामालि -महावीर स्वामी की पुत्री के पति तथा महावीर के प्रथम शिष्य। 

               जैन आचार्य कि श्रेणियां  

1-तीर्थंकर - जिसने मोक्ष को प्राप्त कर लिया हो उसे जैन धर्म में तीर्थ कर कहा जाता था।

2-अर्हत- अर्हत वह कहलाते थे जो निर्वाण प्राप्ति के लिए अग्रसर हुआ करते थे।

3-आचार्य-ऐसा जैन भिक्षु जो जैन भिक्षु संघ का प्रमुख हो उसे आचार्य कहा जाता था।

4-उपाध्याय- जैन धर्म की शिक्षा देने वाले शिक्षक को उपाध्याय कहा जाता था।

5-साधु - सामान्य रूप से सभी जैन भिक्षु को साधु कहा जाता था।

            
             जैन धर्म के 24 तीर्थंकर 

1-ऋषभदेव 2-अजीत नाथ 3-संभवनाथ 4- अभिनंदन स्वामी  5-सुमति नाथ  6-पद्मप्रभु 7- सुपार्श्वनाथ 8-चंद्रप्रभु 9-सुविधिनाथ 10-शीतल 11-श्रेयांसनाथ 12- वासु पूज्य नाथ 13- विमलनाथ 14- अनंतनथ 15- धर्मनाथ  16-शांतिनाथ 17-कुंथुनाथ  18 -अरनाथ 19-मल्लीनाथ 20-मुनि सुब्रत  21-नेमिनाथ 22-अरिष्ठनेमी 23-पार्श्वनाथ 24-महावीर स्वामी   


                 जैन संगतिया   


      प्रथम जैन संगति   का आयोजन लगभग 300 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल में पाटलिपुत्र मैं संपन्न्न्न हुई थी, इस संगीति केेे अध्यक्ष स्थूलभद्र थे। इस संगति में द्वादश अंगोंं का संपादन हुआ था तथा इसी जैन संगति में श्वेतांबर एवं दिगंबर संप्रदायों में विभाजन हुआ था।


द्वितीय जैन संगीति-   द्वितीय जैन संगीति का आयोजन गुजरात के वल्लभी नामक स्थान पर 513 ईसवी में आयोजित किया गया इस संगति के अध्यक्ष देवर दी क्षमा श्रमण ने की थी इस संगति में धर्म ग्रंथों का संकलन कर उन्हें लिपिबद्ध किया गया था।    


          जैन धर्म के 7 सील तथा व्रत 
जैन धर्म में 7 सील तथा सात व्रत होते हैं, जिन्हें अपनाकर जैन धर्म को मानने वाले उत्तम सिविल को प्राप्त होते हैं जिनमें प्रथम है दिग् व्रत, दूसरा देश व्रत, तीसरा अनर्थ दंड व्रत, चौथा सामरिक व्रत, पाचवा प्रोसधोपवास, छठवां उपभोग प्रतिभाग, सातवा अतिथिसविभाग । इन सात प्रकार के सिलो का पालन करके जैन धर्म के मानने वाले अपने जीवन को सुख और समृद्धि की ओर आगे बढ़ाते हैं।

          जैन साहित्य   

जैन साहित्य को "आगम " कहा जाता है। जिसके अंतर्गत 1-12 अंग 2-बारह उपाग, 3-दस पृकीण 4-छ: छेद सूत्र 5-चार मूल सूत्र 6-अनु योग सूत्र, 7-नंदी सूत्र।
           उपरोक्त सूत्र के आधार पर जैन साहित्य को समृद्ध और विकसित बनाया गया है जिसके अंतर्गत जैन धर्म को मानने वाले अनुयाई महावीर स्वामी तथा जैन धर्म की उपयोगिता को समझ कर उसे ग्रहण करते हैं।

                  

          जैन धर्म से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य 

1-जैन परंपरा के अनुसार जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए।

2-जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव थे।

3-जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी के अनुयाई निगृन्थ, कहलाते थे।

4-महावीर स्वामी को "जम्भृक ग्राम"के निकट ऋजुपालिका नदी के किनारे ज्ञान की प्राप्ति हुई।

5-महावीर की पुत्री प्रियदर्शन का विवाह जमाली नामक क्षत्रिय से हुआ, वही महावीर के प्रथम शिष्य और अनुयाई भी बने थे।

6-जैन धर्म में पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति को कैवल्य ज्ञान कहा गया है।

7-महावीर स्वामी की मृत्यु पावापुरी में 468 ईसा पूर्व में हुई थी।

8-जैन भिक्षुओं को नग्न रहने की शिक्षा महावीर स्वामी के द्वारा प्रदान की गई थी।

 9-जैन धर्म के मूल चार व्रत जिसके अंतर्गत अहिंसा, झूठ ना बोलना, चोरी नहीं करना, दूसरों की संपत्ति को अर्जित नहीं करना, इन चार औरतों के बाद महावीर स्वामी ने जैन धर्म को पांचवा व्रत दिया जिसे ब्रह्मचर्य कहां गया।

10-जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत अहिंसा वादी था।
11-जैन धर्म के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के लिए त्रिरत्न का अनुशीलन करना अति आवश्यक है।
12-प्राचीन काल में जैन धर्म का सबसे बड़ा केंद्र चंपानगर था।
13-महावीर स्वामी का पहला उपदेश राजगीर में पाली भाषा में दिया गया था।
14-कर्नाटक राज्य में जैन धर्म को पहुंचाने का श्रेय चंद्रगुप्त मौर्य को जाता है।
15-कलिंग के राजा खारवेल तथा अजातशत्रु का पुत्र उदा इन, जैन धर्म का प्रबल समर्थक था।
16-मथुरा मूर्तिकला सभ्यता में जैन धर्म के विकास का सबसे अधिक योगदान रहा है।
17-जैन धर्म दो संप्रदायों में बटा है प्रथम संप्रदाय श्वेतांबर तथा दूसरा संप्रदाय दिगंबर कहलाता है।
18-जैन धर्म के अनुयायियों के द्वारा भूखा रहकर अपने प्राण को त्यागने को "सल्लेखना विधि"कहां जाता है ।
19-जैन धर्म में ईश्वर तथा आत्मा को मान्यता प्रदान नहीं की गई है।
20-जैन तीर्थंकर ऋषभदेव तथा अरिष्ठनेमी का उल्लेख ऋग्वेद में प्राप्त होता है।
21-विष्णु पुराण का अवलोकन करने से यह पता चलता है कि विष्णु पुराण एवं भागवत पुराण में ऋषभदेव का उल्लेख नारायण अवतार के रूप में किया गया है।
22-जन-जन श्रुति यों के अनुसार पार्श्वनाथ को सम्मेद पर्वत पर 100 वर की अवस्था में निर्वाण की प्राप्ति हुई थी।
23-जैन परंपरा के अनुसार अरिष्ठनेमी कृष्ण के समकालीन माने जाते थे।

                 उपरोक्त तथ्यों एवं जानकारियों के अनुसार हम जैन धर्म के उद्भव तथा विकास एवं महावीर स्वामी का जैन धर्म में योगदान स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं छठी शताब्दी में जो धार्मिक आंदोलन हुए उनमें जैन धर्म का भी एक प्रमुख स्थान है, तथा जैन धर्म की अच्छाइयां ही है जो आज वर्तमान समय तक जैन धर्म अपनी प्रासंगिकता को स्थापित किए हुए हैं।,,,,

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