Vaidik sanskar वैदिक संस्कार एवं उनकी विधियां

           वैदिक संस्कार एवं उनकी विधियां

वैदिक साहित्य में वैदिक संस्कृति के अनुसार संपूर्ण जीवन काल में एक मानव का संस्कारों से के साथ चलना अति उत्तम माना गया है मनुष्य के जन्म से लेकर उसके मृत्यु तक इन संस्कारों की बहुत अधिक महत्ता है, हम आज इस लेख के माध्यम से वैदिक सभ्यता के उन सभी 16 संस्कारों का उल्लेख करेंगे जो वैदिक काल से लेकर वर्तमान समय तक किसी न किसी प्रकार से मानव जाति में अपना उचित महत्व रखते हैं।                                                                 1-गर्भाधान संस्कार- मानव जीवन में गर्भाधान संस्कार  का अति महत्वपूर्ण स्थान है, मानव जाति के विकास के लिए, वंश की परंपरा के लिए, नई पीढ़ी के आगाज के लिए, गर्भाधान संस्कार किया जाता है, जिसके अंतर्गत संतान उत्पन्न करने हेतु पुरुष एवं स्त्री द्वारा की जाने वाली क्रिया ही गर्भाधान संस्कार होता है जिसके माध्यम से किसी महिला में एक नए जीव की उत्पत्ति होती है वैदिक संस्कारों में गर्भाधान संस्कार सबसे प्रथम संस्कार माना जाता है।                            2-पुंसवन संस्कार-वैदिक संस्कारों में गर्भाधान संस्कार के पश्चात पुंसवन संस्कार आता है, जिसके अंतर्गत गर्भधारण करने वाली स्त्री तथा उसके पुरुष के द्वारा करवाया जाता है। इस संस्कार के अनुसार गर्भ के तीसरे चौथे तथा आठवें महीने में स्त्री तथा पुरुष को इस बात के लिए संकल्पित किया जाता है कि वह अपने गर्भ में पल रहे शिशु की हर प्रकार से रक्षा करेंगे तथा ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे जिससे आने वाले बच्चे को किसी प्रकार का नुकसान हो वैदिक संस्कारों में यह संस्कार भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।               3-सीमांत उन्नयन संस्कार-गर्भवती स्त्री की उसके गर्भ में पल रहे शिशु के रक्षा हेतु किए जाने वाला यह महत्वपूर्ण संस्कार है। इसी संस्कार के पश्चात किसी स्त्री के गर्भधारण की सूचना दी जाती है अतः यह संस्कार भी वैदिक संस्कारों में अपना अलग स्थान रखता है।                                                                4-जात कर्म संस्कार-यह संस्कार बच्चे के जन्म के पश्चात किया जाने वाला महत्वपूर्ण संस्कार है, जब किसी शिशु का जन्म होता है और परिवार वाले समाज वाले उस शिशु को पहली बार देखते हैं उसी संस्कार को जात कर्म संस्कार कहा जाता है, तथा इस संस्कार के अंतर्गत सबसे पहले नवजात शिशु को गाय का घी तथा सहद उसकी जीव से स्पर्श कराया जाता है, तथा शिशु की लंबी उम्र की कामना की जाती है।                 5नामकरण संस्कार-यह संस्कार सभी संस्कारों में इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि सारी उम्र भर जिस शिशु को जाना जाएगा उसका निर्धारण नामकरण संस्कार में किया जाता है, वैदिक संस्कारों में नामकरण की विधि वर्ण के अनुसार की जाती थी।        6 निष्क्रमण संस्कार-निष्क्रमण संस्कार वह संस्कार होता है जो किसी बच्चे के जन्म के 12 वे दिन से लेकर चौथे महीने के बीच किसी दिन जब बच्चे को घर से बाहर निकाला जाता है, तथा बालक बाहर के संपर्क में आता है यही संस्कार निष्क्रमण संस्कार कहलाता है।      7 अन्नप्राशन संस्कार-यह वह संस्कार होता है, जिसमें शिशु को जन्म के छठे महीने में पका हुआ अनाज खिलाया जाता है, यही संस्कार अन्नप्राशन संस्कार कहलाता है।                                                            8 चूड़ाकर्म संस्कार-   यह वहां संस्कार होता है जो शिशु के तीसरे से 8 वर्ष के बीच किया जाता है इस संस्कार के अंतर्गत पहली बार शिशु का मुंडन कराया जाता है यही संस्कार वैदिक संस्कारों में चूड़ाकर्म संस्कार के नाम से जाना जाता है, जो आज भी समाज में देखने को मिलता है।                                             9 कर्णवेध संस्कार-यह वह संस्कार होता था, जिसके अंतर्गत छोटे बच्चे को रोगों से बचने हेतु आभूषण धारण करवाए जाते थे मुख्य तौर पर यह आभूषण कान में पहने जाते थे, इसीलिए इस संस्कार का नाम कर्णवेध संस्कार पड़ा।                                             10-विद्यारंभ संस्कार-यह वह संस्कार होता था, जिसके अंतर्गत पांचवें वर्ष में बच्चों को अक्षर ज्ञान हेतु आश्रमों तथा किसी जानकार के पास ज्ञान दो सीखने भेजा जाता।                                                             11-उपनयन संस्कार-इस संस्कार के अंतर्गत, बालक द्विज हो जाता था। इस संस्कार के बाद बच्चे को संयमी जीवन व्यतीत करना पड़ता था। बच्चा इसके बाद शिक्षा ग्रहण करने योग्य हो जाता था।                  12-वेद आरंभ संस्कार-  इस संस्कार के अंतर्गत वेदों की शिक्षा हेतु, प्रोत्साहित किया जाता था तथा इसी संस्कार के अंतर्गत वेदों का अध्ययन कराया जाता था। 13 के शांत संस्कार- इस संस्कार के अंतर्गत उम्र के 16 वर्ष में प्रथम बार दाढ़ी और मूंछ को मुंडा जाता था, यही संस्कार के शांत संस्कार कहलाया जाता था।       14 समावर्तन संस्कार- विद्या अध्ययन समाप्ति के पश्चात यह संस्कार घर पर लौट कर आने की खुशी में किया जाता था। यह संस्कार ब्रह्मचर्य आश्रम की समाप्ति की सूचना वाला भी संस्कार माना जाता था।   15-विवाह संस्कार- यह जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार होता था, संस्कार के पश्चात मनुष्य गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता था तथा अपनी भावी पीढ़ी को उत्पन्न करता था।                                                     16-अंत्येष्टि संस्कार- यह मानव जीवन का सबसे अंतिम संस्कार होता था जिसके अंतर्गत मनुष्य के निधन के पश्चात उसके निर्जीव शरीर को नष्ट कर दिया जाता था यही संस्कार अंत्येष्टि संस्कार कहलाता था।                इस प्रकार से वैदिक समाज में संस्कारों का प्रचलन था और इन्हीं संस्कारों की कड़ी आज के वर्तमान युग में भी दिखाई देती है, यह बात अलग है कि अब इन संस्कारों का दृष्टिकोण थोड़ा अलग हो चुका है परंतु मूल संस्कार वैदिक सभ्यता के ही संस्कार है जो वर्तमान समाज को मानवता के साथ जुड़े हुए हैं।,,,,,                                                               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