Indian campaing of Alexander the Great(भारत पर सिकंदर का आक्रमण)

         भारत पर विदेशियों के आक्रमण।      

         

भारतीय इतिहास के प्रत्येक काल में चाहे वह प्राचीन काल हो मध्यकल हो  या फिर आधुनिक काल हो। भारत की धरा पर विदेशियों का आगमन अलग-अलग कारणों से अलग-अलग कालो में हुआ है, प्रारंभ में यह आगमन व्यापारिक तौर पर तथा बाद में यही एक आक्रमणकारी के रूप में सामने आए हैं आज के इस लेख में हम प्राचीन काल में भारत पर जिन आक्रमणकारियों ने आक्रमण कर भारत की संपदा को नष्ट करना चाहा उन्हें आक्रमणकारियों के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।

 भारत पर ईरानी आक्रमण  भारत प्रारंभ से ही छोटे-छोटे रजवाड़ों में बांटा था पूर्वोत्तर भारत के छोटे-छोटे रजवाड़े धीरे-धीरे मगध साम्राज्य में विलय हो गए। परंतु पश्चिमोत्तर भारत की स्थिति इस दौरान अलग थी। कंबोज, गंधार तथा मद्रास के राजा आपस में लड़ते रहते थे। क्षेत्र में मगध जैसा कोई शक्तिशाली साम्राज्य नहीं था जो इन आपस में लड़ने वाले समुदायों को एक संगठित साम्राज्य के रूप में परिणित कर सकें। एक विशेष बात यह थी कि इस क्षेत्र में बाहर से बड़ी आसानी से आक्रमणकारियों का प्रवेश हो सकता था।

           जिस समय मगध के राजा अपना साम्राज्य बढ़ा रहे थे उस समय ईरान के इखमनी शासक भी अपना राज्य विस्तार कर रहे थे। ईरान के शासकों ने भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर व्यापक राजनीतिक फूट का फायदा उठाया। ईरानी शासक (देरियस)516 ईसा पूर्व में पश्चिम उत्तर भारत में घुस आया और उसने पंजाब सिंधु नदी के पश्चिम के इलाकों और सिंध को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया।यह क्षेत्र फारस (ईरान) का 20 वां प्रांत बन गया। 

 सिकंदर का भारत पर आक्रमण  ईसा पूर्व चौथी सदी में विश्व परअपना अधिपत्य स्थापित करने के लिए यूनानी और ईरानीयो के बीच संघर्ष हुए। मकदूनिया वासी सिकंदर के नेतृत्व में यूनानी यों ने आखिरकार ईरानी साम्राज्य को नष्ट कर दिया। सिकंदर ने न सिर्फ एशिया माइनर और इराक को, बल्कि ईरान को भी जीत लिया। ईरान से वह भारत की ओर बढ़ा। यह बात स्पष्ट थी कि वह भारत की अपार संपत्ति पर ललचाया था। यूनानी लेखकों ने भारत का वर्णन अपार संपत्ति वाले देश के रूप में किया था। इस वर्णन को पढ़कर सिकंदर भारत पर हमला करने के लिए प्रेरित हुआ। सिकंदर में भौगोलिक अन्वेषण और प्राकृतिक इतिहास के प्रति तीव्र ललक थी। उसने सुन रखा था कि भारत की पूर्व सीमा पर कैरिपयन सागर ही फैला है वह विगत विजेताओं की शानदार उपलब्धियों से भी प्रभावित था। वह उनका अनुकरण कर उससे भी आगे निकल जाना चाहता था।

              पश्चिमोत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति इसकी इस योजना के लिए उपयुक्त थी। यह क्षेत्र अनेक राजतंत्र और कबायली राज्यों में बटा हुआ था।जो अपनी अपनी भूमि से चिपके हुए थे और जिन रजवाड़ों पर उनका शासन था उनसे उन्हें बड़ा गहरा प्रेम था। सिकंदर ने पाया कि इन रजवाड़ों को एक-एक कर जीत लेना आसान है। इन इलाकों के शासकों में दो सुविख्यात थे, पहला तक्षशिला का राजा आम्भी, और दूसरा पोरस जिसका राज्य झेलम और चिनाव के बीच फैला था। दोनों एक साथ मिलकर सिकंदर को आगे बढ़ने से रोक सकते थे। मगर वे दोनों एक संयुक्त मोर्चा नहीं बना सके और न ही खैबर दर्रे पर कोई निगरानी रखी गई।

                ईरान पर विजय पा लेने के बाद सिकंदर काबुल की ओर  बढ़ा जहां से खैबर दर्रे को पार करते हुए वह 326 ईसा पूर्व में भारत आया। सिंधु नदी तक पहुंचने में उसे 5 महीने लगे। तक्षशिला के शासक आंम्भी ने आक्रमणकारी के सामने तुरंत घुटने टेक दिए। सिकंदर ने अपनी फौजी ताकत बढ़ाई और खजाने में हुई कमी को पूरा किया। झेलम नदी के किनारे पहुंचने पर सिकंदर का पहला और सबसे शक्तिशाली प्रतिरोध पोरस ने किया। सिकंदर ने पोरस को हरा दिया, मगर वह उस भारतीय राजा की बहादुरी और साहस से बड़ा प्रभावित हुआ। इसलिए उसने उसका राज्य वापस कर दिया तथा उसे अपना सहयोगी बना लिया। इसके बाद वह व्यास नदी तक पहुंचा। वह पूरब की ओर और भी बढ़ना चाहता था मगर उसकी फौज नेे उसका साथ देने से इनकार कर दिया।यूनानी सैनिक लड़ते लड़ते थक गए थे और बीमारियों ने भी उन्हें धर दबाया था। भारत की गरम आबोहवा और 10 सालों से लगातार विजय अभियान में लगे रहने केे कारण वह घर लौटने के लिए अत्यंत आतुर हो गए थे। उन्हेंंं सिंधु के किनारे भारतीय वीरों के साहस काभी आभास हो चुका था। इससेेेे उन्हें आगे बढ़ने कि कोई इच्छा नहीं रह गई। यूनानी इतिहासकार "अरियान" नहींंं लिखा है"युद्ध कला मेंं भारत वासी अन्य तत्कालीन जनों सेेे अत्यंत श्रेष्ठ थे।"यूनानी सैनिकों को विशेष रुप से खबर थी की गंगा के किनारे एक भारी शक्ति है। साफ तौर पर यह मगध राज्य के बारे में था। मगध पर नंद वंश का शासन था और उसकी सेना सिकंदर की सेना से बहुत बड़ी थी। इसलिए सिकंदर आगेे बढ़ने के लिए बार-बार अपील करता रह गया पर यूनानी सैनिक टस से मस नहीं हो सके। सिकंदर ने दुख भरे स्वर मेंं कहा"मैं उन दिलों में उत्साह भरना चाहता हूं जो निष्ठा हीन और कायरता पूर्ण डर से दबे हुए हैं।"इस प्रकार वह राजा जो अपने शत्रुओं से कभी नहींं हरा अपनेे ही लोगों से हार माननेे को मजबूर हो गया। वह वापस लौटने को बाध्य हो गया और पूर्वी साम्राज्य का उसकाा सपन पूरा हुए बिना रह गया। वापस लौटतेेेेेेे हुए सिकंदर ने भारतीय सीमा के अंत तक पहुंचते-पहुंचते उनकेेेेेे छोटे-छोटे गणराज्य को पराजित कर दिया। वह भारत में लगभग 19 महीने रहा जिसके दौरान वह हमेशा लड़ाई मेंंं ही लगा रहा। उसे अपने जीते हुए भूभाग  को सुनियोजित करने का शायद ही मौका मिला। फिर भी उसने कुछ प्रबंध किए। अधिकांंश विजित राज्य उनकेेे शासकों को लौटा दिए गए, जिन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी। परंतु उसने अपने भूभाग को तीन हिस्सों में बांट दिया और तीन यूनानी गवर्नर स्थापित कर इस क्षेत्र में अपनी सत्ता कायम रखने के उद्देश्य से उसने यहां कई नगरों की भी स्थापना की।

 सिकंदर के आक्रमण के परिणाम    सिकंदर के आक्रमण नई प्राचीन यूरोप के निकट संपर्क में आने का अवसर दिया। इसके कई महत्वपूर्ण परिणाम निकले। सिकंदर का भारतीय अभियान खूब सफल रहा। उसने अपने साम्राज्य में एक नया भारतीय प्रांत जोड़ा जो ईरान द्वारा जीते गए भूभाग से काफी बड़ा था। यह अलग बात है कि उन्होंने कब्जे का भारतीय भूभाग जल्दी ही तत्कालीन मौर्य शासकों के कब्जे में चला गया।

               इस आक्रमण का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम था भारत और यूनान के बीच विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष संपर्क की स्थापना। सिकंदर के अभियान से 4 भिन्न-भिन्न स्थल मार्गो और जल मार्गो के द्वार खुले। इससे यूनानी व्यापारियों और शिल्पीयो के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ तथा व्यापार की तत्कालीन सुविधाएं बढ़ी।

       यद्यपि कहां जाता है कि कुछ यूनानी सिकंदर के आक्रमण से पहले भी पश्चिम उत्तर भारत में रहते थे, तथापि आक्रमण के फलस्वरूप इस इलाके मैं और भी यूनानी उपनिवेश स्थापित हुए। उनमें अधिक महत्व के थे काबुल क्षेत्र में सिकंदरिया शहर, झेलम के तट पर बुके फाल और सिंध में सिकंदरिया। इन क्षेत्रों को तो मौर्य शासकों ने जीत लिया, पर इन उपनिवेश  का सफाया नहीं किया, और कुछ इरानी चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक के शासनकाल में ही वहां बने रहे।

                सिकंदर को उस रहस्यमई महासागर के भूगोल में गहरी दिलचस्पी हो गई जिसे उसने पहली बार सिंधु के मुहाने पर देखा था। इसलिए उसने अपने नए बेड़े को अपने मित्र नियाकृस के नेतृत्व में सिंधु नदी के मुहाने से फरात नदी के मुहाने तक समुद्र तट का पता लगाने और बंदरगाह को ढूंढने के लिए रवाना किया। इसलिए सिकंदर के इतिहासकार मूल्यवान भौगोलिक विवरण छोड़ गए हैं। उन्होंने सिकंदर के अभियान का इतिहास भी लिखाजिससे हमें बात की घटनाओं का भारतीय तिथि क्रम निर्धारित आधार पर तैयार करने में सहायता मिली। सिकंदर के इतिहासकार हमें सामाजिक और आर्थिक हालत के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं। वह हमें सती प्रथा,गरीब माता-पिता द्वारा अपनी लड़कियों को बेचने और पश्चिम उतर भारत के उत्तम नस्ल वाले सांडों के बारे में बतलाते हैं। सिकंदर ने वहां से दो लाख सांड यूनान में इस्तेमाल के लिए मकदूनिया भेजें। बढ़ई गिरी भारत की सबसे उन्नत दस्तकारी थी। बढ़ई रथ, नागौर जहाज बनाते थे।

                        पश्चिमोत्तर भारत के छोटे-छोटे राज्यों की सत्ता को नष्ट कर सिकंदर के आक्रमण ने उस क्षेत्र में मौर्य साम्राज्य के विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया।सुना जाता है कि मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर के सैन्य तंत्र की कार्यप्रणाली को थोड़ा बहुत देखा था और उसने उसका कुछ ज्ञान प्राप्त किया था जिससे उसे नंद वंश की सत्ता को उखाड़ने में सहायता मिली।

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