India's famous historical palace (भारत के प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल)

         भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध स्थल

          

भारतीय इतिहास के ऐसे प्राचीन स्थल हुए, जिन्हें, इतिहास काल में बहुत अधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई कुछ नगर वर्तमान में अपने बदले स्वरूप में नजर आ रहे हैं, तथा कुछ नगर इतिहास के गर्त में समा कर ओझल हो चुके हैं, आज हम अपने इस लेख के माध्यम से प्राचीन तथा प्रसिद्ध उन नगरों की चर्चा करेंगे जिनका नाम इतिहास में बड़े गौरव पूर्ण ढंग से लिया जाता है।


 1-इंद्रप्रस्थ  प्राचीन नगरों की श्रृखला में इंद्रप्रस्थ का उज्जयिनि नाम अग्रणी रूप से लिया जाता है, यह भारत का बहुत प्राचीन नगर था। यह यमुना के तट से आधुनिक दिल्ली तक लगभग 4 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। महाभारत में इस नगर को वृहस्थल भी कहा गया है। यहां पांडवों की राजधानी थी तथा इन्होंने ही इंद्रप्रस्थ की स्थापना की थी। इंद्रप्रस्थ मनोहर चित्रशाला, रमणीक वाटिका ओ तथा सुंदर सरोवर के लिए प्रसिद्ध था, वर्तमान में यह आधुनिक दिल्ली के नाम से जाना जाता है।


 उज्जयिनि - पुरातन सभ्यता में विद्या तथा संस्कृति का सबसे प्रसिद्ध केंद्रों में उज्जैनी का नाम अग्रणी रूप से लिया जाता था। प्राचीन काल में यहां पश्चिमी मालवा की राजधानी थी, इसकी भौगोलिक स्थिति मध्य प्रदेश की चंबल नदी की सहायक नदी शिप्रा के तट पर हैं। इस नगर का निर्माण अच्युतगामी ने कराया था। इस नगर का क्षेत्र 6000 मील तक था यह व्यापार का प्रमुख केंद्र था, उज्जैनी की प्रसिद्धि का दूसरा कारणवहां पर निर्मित महाकाल का मंदिर जो भारत केे शैव मंदिरों मैं एक था। उज्जयिनि लिंगायत संप्रदाय का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान था।उज्जयिनि के प्रख्यात राजा विक्रमादित्य को 375 ईसवी के चंद्रगुप्त द्वितीय के समकालीन माना जाता है।


 कंबोज  पश्चिमोत्तर भारत में कंधार के निकट कंबोज स्थित था। यहां के निवासी भौगोलिक रूप से उत्तर में पश्चिमी हिमालय के रहने वाले बताए गए हैं। कंबोज अपने सुडोल तथा वेगवान घोड़ों के लिए प्रसिद्ध था। कंबोज का उल्लेख 16 महाजनपदों में किया जाता , कंबोज से ही अशोक के पांचवे शिलालेख की विशेष पृष्ठभमि दिखाई देती है। भारतीय इतिहास में कंबोज का उल्लेख पाणिनी की अष्टधायी, तथा पतंजलि के"महाभाष्य"से की जाती है, इस तरह से कंबोज का उल्लेख भारतीय इतिहास में अति महत्वपूर्ण हो जाता है ।


 काशी   गंगा नदी के तट पर इलाहाबाद से 128 किलोमीटर की दूरी पर उत्तरी तट पर स्थित काशी भारत के पौराणिक स्थानों में अपना अति महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके उत्तरी तथा दक्षिणी भाग को  व्रत तथा असी नदियों के बहने के कारण इसे वाराणसी कहां गया है। यह 16 महाजनपदों में से एक था, माकृण्डेय पुराण के अनुसार इस नगर का स्थाई निर्माण शूलाणि महादेव ने किया था। यह शिव का स्थान था, काशी के निकट एक"मृगवन"था जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना उपदेश दिया था।


 कलिंग  कलिंग भारत के पूर्वी तट पर महानदी और गोदावरी नदियों के मध्य स्थित था। कल इनको अशोक के भीषण आक्रमण का सामना करना पड़ा था तथा यहां पर अपरिमित नरसंहार के कारण उसका हृदय परिवर्तन हो गया था, तथा कलिंग के युद्ध के पश्चात ही अशोक ने बुद्ध धर्म को अपनाकर हिंसा के मार्ग को छोड़कर अपना जीवन बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के अनुसार व्यतीत करना प्रारंभ कर दिया था।

                सम्राट अशोक तथा उनके कलिंग विजय एवं बौद्ध धर्म को अपनाने के कारण कलिंग प्राचीन ऐतिहासिक स्थलों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।


 कपिलवस्तु   कपिलवस्तु को नेपाल की सीमा पर स्थित बस्ती जिले के उत्तर में पिपरावा से समीकृत किया जाता है। कपिलवस्तु शाक्यो की राजधानी थी तथा महात्मा बुद्ध के जन्म से इस स्थल को अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई। अशोक के शिलालेखों से यह प्रतीत होता है कि अशोक बुद्ध के सम्मान हेतु कपिलवस्तु की धरा पर भी गया था।

 कुशीनगर    कुशीनगर राजनीतिक केंद्र होने के साथ-साथ भारतीय इतिहास में व्यापारिक केंद्र भी था। गौतम बुद्ध को यह नगर बहुत प्रिय था। मल्लो की राजधानी तथा गौतम बुद्ध की निर्वाण भूमि होने केे कारण कुशीनगर की गणना कपिलवस्तु एवं पावा केेेेेे साथ की जा सकती हैै।

              सांची, भरहुत तथा अमरावती की कला में इस नगर की दीवार, परिरवा तथा प्रधान नगर द्वार का अंकन मिलता है। गौतम बुद्ध का निधन इसी नगर के दक्षिण पश्चिम दिशा में स्थित,"सालवन"मैं हुआ था ।


   कुरुक्षेत्र    कुरुक्षेत्र कौरव और पांडवों के प्रसिद्ध धर्म युद्ध का स्थल था, यह क्षेत्र दिल्ली के निकट यमुना के पश्चिम का संपूर्ण प्रदेश तथा सरस्वती और दृषदृती नदी के मध्य का भूभाग सम्मिलित था। भगवत गीता में इसे धर्म क्षेत्र कहा गया है महाभारत के अनुसार यह कहा जाता है कि यहां की मिट्टी से पापियों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। सौर पुराण में इसे तीर्थ स्थल कहां गया है।


 गया   गया बिहार प्रांत में है। यह एक सुंदर तीर्थ स्थान है। वायु पुराण के अनुसार कहा जाता है कि गयासुर ने यहीं पर तपस्या की थी।बौद्ध साहित्य में गया का उल्लेख 1 ग्राम और तीर्थ स्थल के रूप में मिलता है। महात्मा बुद्ध गया गए थे गया के दक्षिण पश्चिम में अशोक ने 100 फुट ऊंचा पाषाण स्तूप बनवाया था। आधुनिक समय में गया का महत्व पितरों का तर्पण करने के लिए प्रसिद्ध है।


  कौशांबी   इलाहाबाद से 50 किलोमीटर की दूर दक्षिण पश्चिम में यमुना तट पर स्थित कौशांबी प्राचीन काल में एक महत्वपूर्ण नगर था। सातवीं सदी ईसवी में चीनी यात्री युवान यहां पर आया था। उसके अनुसार यहां पर 10 से अधिक बौद्ध विहार थे जो अब जीर्ण अवस्था में है। किसी समय यहां पर प्रदोत द्वारा निर्मित कराया हुआ दुर्ग भी देखा जा सकता है।


 गंधार  अशोक के पांचवे शिलालेख के आधार पर यह कहा जाता है कि इस क्षेत्र में पश्चिमोत्तर पंजाब तथा निकटवर्ती रावलपिंडी और पेशावर सम्मिलित थे। गंधार की प्राचीन राजधानी पुष्कारा वती थी। यह देश अनाज के उत्पादन से भरपूर था तथा यहां की जलवायु उष्ण थी।


  काजंगला   यह एक पहाड़ी क्षेत्र था , जो अंग के पूर्वी क्षेत्र में फैला हुआ था। वर्तमान काल में यह राजमहल जिले में आता था। बौद्ध दार्शनिक नाग सेन का जन्म यही हुआ था। गौतम बुध भी यहां आए थे।इस राज्य की सीमा का विस्तार उत्तर प्रदेश से पूर्वी बिहार तक था यह एक उन्नत प्रदेश था तथा यहां पर खाद्यान्न की प्रचुरता थी। 


  अवंती   यह जनपद प्राचीन 16 महाजनपदों में से एक था। यह बड़ा ही समृद्ध साली और संपन्नता को लिए हुए इतिहास काल में प्रसिद्ध जनपद था। दूसरी शताब्दी तक इसे अवंती तथा सातवीं सदी ईस्वी के पश्चात मालव कहां जाने लगा। छठी सदी ईसा पूर्व में यहां भारत के चार प्रमुख महाजनपदों में से एक था बाद में यह मौर्य साम्राज्य में मिल गया।

             बुद्ध के समकालीन चंड प्रद्योत अवंती के शासक थे। अवंती एवं कौशांबी के राज्यों में वैवाहिक संबंध स्थापित होते थे। अशोक अवंती देश के कुमार अमात्य के रूप में नियुक्त किया गया था। अवंती प्राचीन भारत का एक व्यस्त व्यापारिक शिक्षा तथा महान केंद्र था। इसकी राजधानी उज्जैनी थी।


 चित्रकूट  इलाहाबाद से दक्षिण पश्चिम में 104 किलोमीटर दूर बांदा जिले में स्थित चित्रकूट एक पहाड़ी है। रामायण में इसे भारद्वाज आश्रम से 20 मील दूर स्थित बताया गया है। चित्रकूट में मंदाकिनी तथा मालिनी नामक नदियां प्रवाहित होती थी। जैन ग्रंथ भगवती टीका में चित्रकूट को "चित्तकुड" कहां गया है।


 तक्षशिला   प्राचीन काल में तक्षशिला उत्तर पश्चिम भारत का एक इतिहास प्रसिद्ध नगर था। यह शुरू में पूर्वी कंधार की राजधानी था। रामायण के अनुसार भरत के पुत्र तक्ष द्वारा इसकी स्थापना की किए जाने के कारण इसका नाम तक्षशिला पड़ा। बौद्ध तथा जैन परंपराओं ने इस नगर को शिक्षा का प्रमुख केंद्र माना है। बिंदुसार के शासनकाल में अशोक तथा अशोक के शासनकाल में कुणाल यहां का राज्यपाल था। मौर्यों के उपरांत यह इंडो बैक्ट्रियन साम्राज्य के अंतर्गत चला गया उनके पतन के पश्चात यह सको और पल्लव वंश के अधीन हो गया। तक्षशिला के स्मारकों में धर्म राजिका स्तूप महत्वपूर्ण है।


 नालंदा  यह सातवीं शताब्दी का एक महत्वपूर्ण विद्यापीठ था। यह दक्षिणी बिहार में राजगिरी के पास स्थित है और इसके अवशेष बड़गांव नामक गांव तक बिखरे हैं। चीनी यात्री हेनसांग ने कहा है कि गुप्त सम्राट नर्सिंग गुप्त बाल आदित्य ने नालंदा में एक सुंदर मंदिर का निर्माण कराया और उसमें 80 फीट ऊंचे तांबे की बुद्ध प्रतिमा स्थापित की। नालंदा में ही हस्तलिखित ग्रंथों का एक विशाल पुस्तकालय भी था।


 पाटलिपुत्र    पाटलिपुत्र को मगध साम्राज्य की राजधानी होने का गौरव प्राप्त था। इसका प्राचीन नाम कुसुमपुर और पुष्प पुर भी था यह नगरगंगा और सोन नदियों के संगम पर आधुनिक पटना तथा बांकीपुर के निकट स्थित था। पाटलिपुत्र का दुर्ग राजा अजातशत्रु ने बनवाया और उसके पुत्र उदय ने पाटलिपुत्र दुर्ग के पड़ोस में गंगा तट पर कुसुमपुर की स्थापना की।दोनों नगर शीघ्र मिलकर एक हो गए और मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त के अधीन पाटलिपुत्र नगर का राजधानी के रूप में इसका विकास हुआ। नगर के चारों और लकड़ी की प्राचीर बनी हुई थी जिसमें 570 बुर्ज तथा 64 द्वार थे। पाटलिपुत्र गुप्त सम्राटों की राजधानी रहा जिन्होंने 320 ईसवी से पास अभी तक राज्य किया। उनका राज्य काल भारतीय इतिहास का स्वर्ण काल माना जाता है और पाटलिपुत्र उस युग में भारतीय संस्कृति और सभ्यता का केंद्र था। प्राचीन पाटलिपुत्र के निकट पटना अब वर्तमान में बिहार की राजधानी है।

                 इस प्रकार से भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध स्थलों की जानकारी इस लेख के माध्यम से प्रस्तुत की जा रही है जो भारतीय इतिहास से संबंधित तथ्य और प्रमाण को जानने के लिए काफी उपयुक्त सिद्ध होगी।,,,,,







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