Kushan dynasty कुषाण वंश तथा शक वंश

               शक एवं कुषाणो का इतिहास   

                      


भारतीय इतिहास में, शक तथा कुषाण साम्राज्य का अपना अलग महत्व है। इन दोनों साम्राज्यो के द्वारा भारतीय इतिहास को समृद्ध बनाने में बहुत सा योगदान दिया गया है जिस का विस्तृत विवरण इस ब्लाक के अंतर्गत जानकारी के माध्यम से दिया जा रहा है। इतिहास के उपलब्ध विभिन्न प्रमाणों से यह पता चलता है कि शक कई झुण्डो में भारत में आए और प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व के अंतर तक वे गंधार, पंजाब , मथुरा, काठियावाड़ और दक्षिण में महाराष्ट्र तक के भूभाग में फैल गए थे।

                इतिहास के स्रोतों से पता चलता है कि सख्त शासकों ने"क्षत्रप और महाक्षत्रप की उपाधियों को धारण किया और प्रारंभ में वह पार्थियन के अधीन तथा बाद में कुषाण ओ की सत्ता को स्वीकार किया।



               शक साम्राज्य विशेष तथ्य  

  • शको नहीं भारी संख्या में चांदी के सिक्के का प्रचलन प्रारंभ किया जिसके प्रमाण भारतीय इतिहास में स्पष्ट रूप से नजर आते हैं।

  • सर्वाधिक विख्यात शक शासक रुद्रदामन प्रथम था, उसने काठियावाड़ के अर्ध शुष्क क्षेत्र की सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार किया। रुद्रदामन के समय सुवर्णरेखा और पुलाशिनी नदियों के प्रबल प्रभाव और भारी बाढ़ के कारण झील का बांध टूट गया जिसकी मरम्मत सुविचार सुविशाख के देखरेख में हुई।
  • रुद्रदामन संस्कृत का बड़ा प्रेमी था, उसने सबसे पहले विशुद्ध संस्कृत भाषा में लंबा अभिलेख जारी किया।
  •      कुषाण साम्राज्य से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य 
  • कुषाण वंश की स्थापना भारत में कुजुल कडफिसेस ने 15 ई.में की।

  • चीनी स्रोत के अनुसार कुषाण चीन के पश्चिमोत्तर क्षेत्र के यूची कबीले के थे।
  • विम कडफिसेस ने बड़ी संख्या में स्वर्ण मुद्रा जारी की इसके कुछ सिक्कों पर शिव तथा नंदी एवं त्रिशूल की आकृतियां बनी है।
  • आरंभ में कुषाण राजाओं ने बड़ी संख्या में स्वर्ण मुद्राएं जारी की। उनकी स्वर्ण मुद्राएं धातु की शुद्धता में गुप्त स्वर्ण मुद्राओं से उत्कृष्ट थी।
  • कनिष्का सर्वाधिक विख्यात कुषाण शासक था। उसने 78 ईसवी में शक संवत चलाया। उसने कश्मीर में बौद्धों का 1 सम्मेलन बुलवाया जिसमें महायान संप्रदाय को अंतिम रूप प्रदान किया गया।
  • कनिष्का ने पुरुष पुर पेशावर को अपनी राजधानी बनाया मथुरा इसकी दूसरी राजधानी थी।
  • कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान शाखा का अनुयाई था इसी के समय बौद्ध धर्म की चौथी संगति का आयोजन किया गया। यह संगति कश्मीर के कुंडल वन में आयोजित की गई इसके अध्यक्ष वसुमित्र एवं उपाध्यक्ष अश्वघोष थे।
  • बौद्ध धर्म की संगति में बौद्ध धर्म दो भागों में हिना यान और महायान में विभाजित हो गया। इस संगति में नागार्जुन शामिल हुए। इसी संगति में तीनों पिटको को पर टिकाए लिखी गई। जिनके महाविभाष नामक पुस्तक में संकलित किया है।
  • कनिष्क के तांबे के सिक्कों पर उसे बलि वेदी पर बलि दान करते हुए दर्शाया गया है।
  • कनिष्का के दरबार में सबसे महान साहित्यिक व्यक्ति अश्वघोष था। इसकी रचनाओं की तुलना महान मिल्टन गेटे , कांट से की गई है।
  • अश्वघोष ने बुद्धचरित की रचना की जिसे बौद्ध धर्म का महाकाव्य कहा जाता है।इस ग्रंथ की तुलना वाल्मीकि की रामायण से की जाती है।
  • नागार्जुन दार्शनिक एवं वैज्ञानिक थे चीन की तुलना मार्टिन लूथर से की जाती है। इससे भारत का आइंस्टाइन भी कहा जाता है।
  • चरक जैसे महान चिकित्सक कनिष्क के दरबार में सुशोभित होते थे।
  • कनिष्क 78 ईसवी में राजा बनने के पश्चात शक संवत की स्थापना की थी।
  • कनिष्क के विषय में एक और मशहूर बात कही जाती है कि उन्होंने पाटलिपुत्र के शासक को हराकर वहीं से विद्वान अश्वघोष, बुद्ध का भिक्षा पात्र एवं एक अनोखा मुर्गा साथ लाया था।
  • कनिष्का ने कश्मीर विजय के बाद वहां पर कनिष्कपुर नाम का नगर बसाया था।
  • कनिष्क की सबसे महत्वपूर्ण वीडियो में से उसकी चीन के यार कंद, खोतान तथा काशगर की विजय थी, जिन्हें इतिहासकार प्रमुखता से स्पष्ट करते हैं।
  • कुशान राजा देवपुत्र की उपाधि धारण करते थे जो उन्होंने चीन से ली थी।
  • बुद्ध के अवशेषों पर कनिष्का ने पेशावर में एक स्तूप एवं मठ का निर्माण करवाया था।
  • गांधार शैली में निर्मित बुद्ध तथा बोधिसत्व मूर्तियां ही विशेष रूप से उल्लेखित होती है जो कनिष्क के काल की प्रसिद्ध कृतियों में मानी जाती है।
  • प्रसिद्ध दार्शनिक एवं वैज्ञानिक तथा शून्यवाद के प्रति वादक नागार्जुन कनिष्क के दरबार में रहते थे।
  • नागार्जुन ने माध्यमिक सूत्र ग्रंथ को लिखा था।
  • कनिष्क का दरबारी चिकित्सक चरक था जिन्होंने चरक संहिता का निर्माण किया था।
  • ईशा की पहली सती में हिप्पालस एक यूनानी नाविक ने अरब सागर में चलने वाली मानसूनी हवाओं का पता लगाया जिससे भारत का पश्चिमी एशिया के बंदरगाहों से व्यापार सुगम हो गया।
  • सिल्क मार्ग रेशम मार्गमद्धेशिया से गुजरने वाला व्यापारिक मार्ग जो चीन की पश्चिम के एशियाई भूभाग से जुड़ता था यह कुषाण काल की प्रमुख खोज थी।
  • पेरीप्लस आंफ दि इरिथिंयन सी प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में किसी अज्ञात यूनानी नाविक द्वारा लिखित जिसमें भारत से रोम क निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में मिर्ची, मोती, हाथी दांत हीरे तथा केसर का उल्लेख मिलता है।
  • भारतीय व्यापारी रेशम निर्यात रोम से करते थे जिसके बदले भारत को बड़ी संख्या में सोने और चांदी के सिक्के प्राप्त होते थे। इस व्यापार से दुखी होकर प्लिनी ने कहा था कि प्रति वर्ष करीब करोड़ों की संपदा भारत चीन और अरब को जाती है।
  • भारत के पश्चिमी तट पर स्थित बंदरगाह बैरीगाज़ा जिसे भड़ौच के नाम से जाना जाता था पश्चिमी एशिया का अधिकांश व्यापार इसी बंदरगाह से होता था।
  • अरिकामेडु मे रोमन बस्ती के साक्ष्य मिले हैं, पेरिप्लस ऑफ द इरिथियन सी में "पेडोक"नाम दिया गया है।
  • कार्षापण चारों धातु सोना चांदी तांबा तथा शीशा से बनाया जाता था।
  • कनिष्क के समय तक करीब 18 बौद्ध पंथो का उदय हो चुका था। बुद्ध का एक और नाम मैत्रेय था।जिसके संदर्भ में बौद्ध ग्रंथों में कहा गया है कि यह भविष्य में दुख से दूर करने के लिए लिया गया अवतार होगा।
  • बुद्ध की सर्वाधिक पुरानी मूर्ति मथुरा से मिली है।
  • बुद्ध की प्रथम मूर्ति के निर्माण का श्रेय मथुरा कला को ही जाता है।
  • बुध की सर्वाधिक मूर्तियों का निर्माण गंधार कला के अंतर्गत हुआ है। इन मूर्तियों में सर्वाधिक मूर्तियां मैत्रेय की है।
  • गंधार शैली यथार्थवादी एवं मथुरा कला आदर्शवादी थी गंधार कला के अंतर्गत बुद्ध की मूर्तियों का मुख यूनानी देवता अपोलो से मिलता है।

  • सर्वप्रथम कनिष्का के द्वारा चलाए गए सिक्कों पर ही बुद्ध की मूर्तियों के बने होने का पता चलता है। इन सिक्कों पर ग्रीक भाषा में"बोडडो"खुदा हुआ है खुदा हुआ है।
अजंता की गुफा संख्या 910 सर्वाधिक प्राचीन है इनकी विषय वस्तु जातक कथाओं से मिलती है।
            इस प्रकार से कुषाण काल का इतिहास भारतीय इतिहास में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है, इस काल की उपयोगिता भारतीय सभ्यता में नए धर्म की उपयोगिता को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है, अतः यह लेख सत्यम कुषाण काल के इतिहास को जानने हेतु अति महत्वपूर्ण एवं उपयोगी साबित हो सकता है।,,

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