Mauryan Administration

                      Mauryan Administration मौर्य साम्राज्य  


               


     चंद्रगुप्त मौर्य   मौर्य राजवंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य (विष्णु गुप्त) की सहायता से नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद को हराकर 323 ईसा पूर्व में मौर्य वंश की स्थापना की।

  चंद्रगुप्त मौर्य के कुल के संबंध में प्रचलित मत  

                चंद्रगुप्त मौर्य के संबंध में अनेक विद्वानों ने अलग अलग मत दिए हैं, कुछ विद्वान चंद्रगुप्त मौर्य को साधारण कुल का तथा कुछ ब्राह्मण कुल का मानते हैं। ब्राह्मण परंपरा के अनुसार चंद्रगुप्त की माता शूद्र जाति की मुरा नामक स्त्री थी जो नंदू के रनवास में रहती थी।ऐसी अनेक मान्यताएं चंद्रगुप्त के कुल से संबंधित है जिन्हें हम विस्तार से स्पष्ट कर रहे हैं।

 ब्राह्मण साहित्य   सबसे महत्वपूर्ण मात्रा मण साहित्य का आता है, जिसके अंतर्गत चंद्रगुप्त मौर्य को शूद्र जाति की माता से उत्पन माना जाता है।


 बौद्ध एवं जैन ग्रंथों के अनुसार  बौद्ध एवं जैन ग्रंथों के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय कुल का माना जाता है।


  विशाखदत्त के अनुसार   विशाखदत्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य को निम्न कुल का माना गया है।


 रोमिला थापर के अनुसार  इतिहास लेखिका रोमिला थापर के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य वैश्य वर्ण से संबंधित थे।

            चंद्रगुप्त मौर्य की चंद्रगुप्त संज्ञा का ज्ञान प्राचीन अभिलेख साक्ष्य रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से मिलता है।  

  Plutark के अनुसार चंद्रगुप्त 600000 सैनिकों को लेकर समूचे भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित किया।

 जस्टिन - ने चंद्रगुप्त की सेना को"डाकुओं का गिरोह"(A band of robbers) कहा है। 


   तक्षशिला धनुर्विद्या तथा वैधक की शिक्षा के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध था। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी सैनिक शिक्षा यहीं पर ग्रहण की थी।

         कौशल के राजा प्रसनजीत, मगध का राजवैध जीवक, सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ चाणक्य, बौद्ध विद्वान वसुबंधु आदि ने तक्षशिला में ही शिक्षा प्राप्त की थी।


               मौर्य प्रशासन व्यवस्था एक नजर में  

मौर्य प्रशासन के केंद्रीय तंत्र में सबसे उच्च अधिकारी को तीर्थ  कहलाते थे। मौर्य प्रशासन में 18 प्रमुख तीर्थ हुआ करते थे जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

          1-  अमात्य -प्रधानमंत्री

           2-   पुरोहित-प्रधानमंत्री तथा प्रमुख धर्माधिकारी

             3-समाहर्ता-राजस्व विभाग का प्रमुख अधिकारी।

              4-सनिंधाता- राज्य के संपूर्ण कोष का

 कोषाध्यक्ष ।

               5-प्रदेष्टा- फौजदारी न्यायालय का प्रमुख न्यायाधीश प्रदेष्टा कहलाता था।

                6-नायक-सेना संचालक प्रमुख अधिकारी नायक कहलाता था।

                  7-कर्मांतिक -राज्य के समस्त उद्योग धंधों का प्रधान निरीक्षक कर्मांतिक कहलाता था।

                   8-व्यावहारिक-दीवानी न्यायालय का प्रमुख न्यायाधीश व्यवहारिक कहलाता था।


                      9-दंड पाल -समस्त सेना के लिए आवकआवश्यक सामग्री एकत्रित करने वाला प्रमुख अधिकारी दंड पाल कहलाता था।

                    10-आटविक -राज्य के संपूर्ण वन विभाग का प्रधानआटविक कहलाता था।

                       11-दौवारिक- राजा के राजमहल की देखभाल करने वाला प्रधान  दौवारिक कहलाता था।


                 ‌     12-अंत पाल -राज्य के सीमावर्ती दुर्ग का प्रमुख निरीक्षक अंत पाल कहलाता था।

                          13-आन्तवंशिक- सम्राट की अंगरक्षक सेना का प्रमुखआन्तवंशिक कहलाता था।

             

                         14-नागरक -नगर का प्रमुख अधिकारी  नागरक या कोतवाल कहलाता था।

                          15-दुर्ग पाल-समस्त राजकीय दुर्ग रक्षकों का प्रमुख दुर्ग पाल कहलाता था।


                        16-युवराज-राजा का प्रमुख उत्तराधिकारी युवराज कहलाता था।

                 17-सेनापति-युद्ध विभाग का प्रमुख मंत्री सेनापति कहलाता था। 

                         18-मंत्री परिषद अध्यक्ष-समस्त मंत्री परिषद का एक अध्यक्ष होता था जिसे मंत्री परिषद अध्यक्ष कहा जाता था।



       चंद्रगुप्त मौर्य से संबंधित अति महत्वपूर्ण तथ्य

1-चंद्रगुप्त मौर्य के नाम का साक्ष्य प्राचीन अभिलेख जूनागढ़ के रुद्रदामन अभिलेख से प्राप्त होता है।


2-प्राचीन जूनागढ़ अभिलेख ब्राही लिपि में लिखा हुआ है।

3-चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन से संबंधित प्रमुख घटना चंद्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस के बीच हुआ युद्ध है जो 305 ईसा पूर्व में हुआ था जिसमें सेल्यूकस पराजित हुआ था।


4-चंद्रगुप्त मौर्य तथा सेल्यूकस के बीच हुए युद्ध का परिणाम एक संधि से हुआ जिसके अंतर्गत सेल्यूकस ने अपनी पुत्री का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य के साथ कर दिया इस प्रकार से चंद्रगुप्त मौर्य ने यूनानी यों को भारत से बाहर निकालने का कार्य किया।


 5-सेल्यूकस नहीं अपने राजदूत मेगास्थनीज को चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा था। तथा मेगास्थनीज ने ही इंडिका नामक प्रमुख किताब की रचना की थी।

 6-इतिहासकार plutark के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार स्वरूप प्रदान किए थे।

 7-अपने जीवन के अंतिम समय में चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म को स्वीकार कर लिया था।

 8-चंद्रगुप्त मौर्य की पत्नी हेलेना सेल्यूकस की पुत्री थी। 

  9-चंद्रगुप्त मौर्य के दक्षिण विधायक की जानकारी तमिल ग्रंथ आहना नूरु से प्राप्त होती है।

   10-चंद्रगुप्त की सेना के  प्रमुख अंग थे जिनमें अश्व सेना, हस्ती सेना, पैदल सेना, नौसेना, रथ सेना आदि प्रमुख अंग थे।

   11- चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कर्नाटक के श्रावणबेलगोला में स्थित चंद्र गिरी पहाड़ी पर 298 ईसा पूर्व में हुई थी।

   

   12- चंद्रगुप्त मौर्य ने सल्लेखना विधि से भूखे प्यासे रहकर अपने शरीर का त्याग किया था।

  

   13-चंद्रगुप्त मौर्य के राज्यपाल पुष्य गुप्त वैश्य ने सुदर्शन नामक झील का निर्माण करवाया था।

   

           बिंदुसार 298 ई.पू. से 272 ईसा पूर्व 



चंद्रगुप्त मौर्य के पश्चात उसका पुत्र बिंदुसार 298 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य का अधिपति बना। चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र उत्तराधिकारी को यूनानी लेखकों ने अमित्रोंकेट्स के नाम से जानते थे।

बौद्ध ग्रंथ दिव्या दान के अनुसार बिंदुसार के शासनकाल में तक्षशिला में दो विद्रोह हुए प्रथम विद्रोह के दमन के लिए अशोक को तथा दूसरी बार सुसीम को भेजा गया था।

           बिंदुसार के दरबार में यूनानी राजदूत"डाई मेकस"आया था। बिंदुसार के अलग अलग नाम अलग अलग विवरणों से प्राप्त होते हैं जिसके अंतर्गत वायु पुराण के अनुसार बिंदुसार का नाम"भद्रसार"जैन ग्रंथ के अनुसार"सिंहसेन"तथा चीनी विवरण के अनुसार बिंदुसार को बिंदु पाल कहा गया है।

                बिंदुसार ने सीरिया के राजा एण्टियोकस से मदिरा तथा सूखे अंजीर एवं एक दार्शनिक की मांग की थी।एण्टियोकस ने दार्शनिक भेजने से इंकार कर दिया था। बिंदुसार आजीवक संप्रदाय का अनुयाई था तथा पिंगल वत्स नामक आजीवक विद्वान बिंदुसार के दरबार में रहता था। भविष्य में अशोक के राजा बनने की भविष्यवाणी भी पिंगल वत्स ने की थी । बिंदुसार की मृत्यु के समय अशोक उज्जैन में राज्यपाल था। बिंदुसार ने ही दो समुद्रों के बीच की भूमि समेत 16 राज्य को अपने अधीन किया था। आजीवक बनने से पूर्व बिंदुसार ब्राह्मण धर्म को मानता था।


               चाणक्य विशेष   

* चाणक्य के बचपन का नाम विष्णुगुप्त था।

*चाणक्य विष्णुगप्त ने

 अर्थशास्त्र राजनीति शास्त्र की रचना की थी ।

*चाणक्य को भारत का मैकियावेली कहा जाता है ।

*ऐतिहासिक स्रोतों से प्राप्त चलता है चाणक्य के पिता का नाम चणक था।


                   अशोक (269ई.पू.से 232 ईसा पूर्व   

 बिंदुसार की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र अशोक मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर बैठा। सिंहली अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या की थी। अशोक का विधिवत राज्याभिषेक लगभग 269 ईसा पूर्व में हुआ वैसेेे तो अशोक 273 ईसा पूर्व में ही मगध के राज सिंहासन पर बैठ चुका था। अभिलेखों मेंअशोक को"देवानामपिय"देव नाम प्रियदर्शी एवं राजा कहां गयाा है। अशोक का मात्र नाम"मस्की के लघु शिलालेख"प्रथम में मिलता है। गुर्जरा लेख में भी इसका नाम अशोक मिलता है। पुराणों में अशोक को अशोक वर्धन कहा गया है।

                    अशोक के राज्याभिषेक के सातवे वर्ष खोतान एवं कश्मीर के क्षेत्रों के अनेक भागों को अपने साम्राज्य में मिलाया था। राज तरंगिणी के अनुसार अशोक ने कश्मीर में वितस्ता नदी के किनारे श्रीनगर नामक नगर की स्थापना की थी। अशोक के जीवन काल का सबसे महत्वपूर्ण समय राज्य अभिषेक के आठवें वर्ष में आता है 261 ईसा पूर्व में कलिंग पर अशोक ने आक्रमण किया उस समय कलिंग का राजा खारवेल था इस युद्ध का उल्लेख अशोक के 13वें शिलालेख से प्राप्त होता है। 

                    

      अशोक के प्राप्त सभी अभिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि उसका साम्राज्य उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत अफगानिस्तान दक्षिण में कर्नाटक पश्चिम में काठियावाड़ एवं पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक फैला था। असम मौर्य साम्राज्य से बाहर था। अशोक ने नेपाल में ललित पन नामक एक नगर को भी बसाया था।

         

  सम्राट अशोक से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य 

1-अशोक के 13वें शिलालेख से पता चलता है कि अशोक ने 261 ईसा पूर्व में कलिंग पर विजय प्राप्त की थी।

     2-कलिंग की राजधानी तोसली थी।

      3-अशोक को उप गुप्त ने बौद्ध धर्म से दीक्षित किया था।

4-अशोक ने लुंबिनी नगर को धार्मिक करो से मुक्त रखा था।

 5-अशोक की माता का नाम शुभदृंगी था ।शुभदृंगी चंपा के एक ब्राह्मण की पुत्री थी।

6- Asandhimitra and karuvaki अशोक की दो पत्नियां थी।

7-अशोक की पत्नी कारूवाकी के पुत्र का नाम तीवर था।

 8-अशोक की एक अन्य पत्नी नाग देवी से उत्पन्न पुत्र पुत्री महेंद्र एवं संघमित्रा थे।अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा था।

          
           

                   अशोक के शिलालेख  


अशोक की महत्वपूर्ण कृति उसके द्वारा निर्मित 14 शिलालेख है तथा 7 स्तंभ लेख है जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

          1-शाहबाजगढ़ी शिलालेख-पेशावर
          2-मान सेहरा- (हजारा)

          3-काल्सी-देहरादून

           4-गिरनार-गुजरात
            5-सोपारा- महाराष्ट्र
             6-धौली-उड़ीसा
              7-जौगढं-उड़ीसा

               8-पेरगुडी-आंध्र प्रदेश

    अशोक के लघु शिलालेख  1-रूपनाथ-जबलपुर 2-बैराट-जयपुर 3-सहसराम-बिहार 4-मस्की-रायचूर आंध्र प्रदेश 5-गोवीमठ/रावीमठ-मैसूर 6-पालकी गुंडु-मैसूर।   7-गुजृरा-दतिया मध्य प्रदेश 8-मंडगिरी-आंध्र प्रदेश 9-पेगुड़ी-आंध्र प्रदेश 10-चीतल दुर्ग में तीन स्थानों पर-मैसूर 11-शरेकुना-कंधार 

      सात स्तंभ लेख   अशोक द्वारा निर्मित सात स्तंभ लेख इस प्रकार से है। 1-रुमनदेई-नेपाल 2-निगलिवा-नेपाल 3-लौरिया नंदनगढ़ 4-लोरियाअरराज-चंपारण 5-रामपुरवा 6-इलाहाबाद 7-टोपरा एवं मेरठ वर्तमान में दिल्ली में इस प्रकार से अशोक द्वारा निर्मित साथ स्तंभ लेख इतिहास के खजाने में आज भी दर्ज है।

           अशोक ने जिन विदेशी शासकों के यहां धर्म प्रचारक भेजें उनके नाम।  1-अन्तियोक(सीरिया नरेश एण्टिओकस थियोस)

2-तुरमय(मिस्र नरेश टाल्मी फिलाडेल्फस)
 3-अन्तिकिनी(मकदूनिया नरेश गोनेतूस)
    4-यक(साइटीन नरेश मगस)
      5-अलक सुंदरी(एंजिल्स के राजा एलेग्जेंडर)


       अशोक के 14 शिलालेख में वर्णित विषय  


प्रथम।  -अशोक के प्रथम शिलालेख में पशु बलि की निंदा की गई है।

द्वितीय-अशोक के दूसरे शिलालेख में मनुष्य और पशु दोनों की चिकित्सा व्यवस्था हेतु बात लिखी गई है।

तीसरा शिलालेख-अशोक ने अपने तीसरे शिलालेख में अधिकारियों को प्रत्येक पांचवें वर्ष अपने राज्य के दौरे पर जाने का आदेश दिया है।


चौथा शिलालेख-अशोक के चौथे शिलालेख में धर्म से संबंधित नियमों का उल्लेख किया गया है।


पांचवा शिलालेख- अशोक ने अपने पांचवे शिलालेख में धर्म महा मात्रौ की नियुक्ति का उल्लेख किया है।


छठवां शिलालेख -अशोक छठवें शिलालेख में प्रशासनिक सुधारों एवं आत्म नियंत्रण की शिक्षा का उल्लेख किया गया है।

7-सातवां शिलालेख-अशोक के सातवें शिलालेख में सभी धार्मिक मतों के प्रति निष्पक्षता का भाव स्पष्ट किया गया है।


आठवां शिलालेख-अशोक के आठवें शिलालेख में बोधगया की यात्रा का उल्लेख किया गया है।


नौवें शिलालेख-अशोक के शिलालेख में भेट एवं शिष्टाचार का उल्लेख किया गया है।


दसवां शिलालेख-अशोक के दसवें शिलालेख में प्रत्येक क्षण प्रजा के कल्याण की बात को दिमाग में रखने की बात कही गई है।


11 वा शिलालेख-अशोक की 11वीं शिलालेख में धर्म की व्याख्या प्रस्तुत की गई है।


बारवा शिलालेख-अशोक के बारे में शिलालेख में धार्मिक सहिष्णुता पर जोर दिया गया है तथा स्त्री महा मात्रों की नियुक्ति की बात कही गई है।


तेलवा शिलालेख-अशोक के 13वें शिलालेख में कलिंग युद्ध का वर्णन किया गया है जिसमें अशोक के हृदय परिवर्तन की बात तथा धम्म विजय की घोषणा, विदेशों में धर्म प्रचार पांच विदेशी राज्यों की चर्चा का उल्लेख किया गया है।


चौदहवां शिलालेख-अशोक के 14 वें शिलालेख में जनता को धार्मिक जीवन जीने के लिए प्रेरित किया गया है तथा पहले 13 शिलालेखों का पुनरावलोकन किया गया है।


              अशोक के शासन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य  


1-अशोक का उल्लेख मास्की , नेत्तूर, गुर्जरा तथा उदेगोलम, अभिलेख में है।

2-अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम 1837 ईस्वी में जेम्स प्रिंसेप पढ़ने में सफलता प्राप्त की थी।

3-कल्हण की राज तरंगिणी से पता चलता है कि अशोक प्रारंभ में शिव की पूजा करता था।

4-अशोक के धर्म की परिभाषा दूसरे तथा सातवें स्तंभ लेख में दी गई है, अशोक के धर्म की परिभाषा"राहुलोवादसुत्त"से ली गई है।


5-अशोक एक ऐसा प्रथम शासक था, जिसने अभिलेखों के माध्यम से अपनी प्रजा को संबोधित किया, इसकी प्रेरणा उसे ईरानी राजा दारा प्रथम से मिली थी।


    अर्थशास्त्र के अनुसार मौर्य साम्राज्य में नियुक्त प्रमुख अधिकारी 

 लक्षणाध्यक्ष-मुद्रा तथा टकसाल विभाग का अध्यक्ष कहलाता था।


पौतवाध्यक्ष-माप तौल विभाग का अध्यक्ष।


3-सीताध्यक्ष-राजकीय कृषि विभाग का अध्यक्ष।


4-आकराध्यक्ष -मौर्यकालीन खानों का अध्यक्ष।


5-गणिकाध्यक्ष-वेश्याओं का अध्यक्ष।


6-नवाध्यक्ष-जहाजरानी विभाग का अध्यक्ष।


7-पत्नाध्यक्ष -बंदरगाहों का अध्यक्ष।

8-देवताध्यक्ष-धार्मिक संस्थानों का अध्यक्ष।


9-मुद्राध्यक्ष-पासपोर्ट विभाग का अध्यक्ष।


10-लोहाध्यक्ष-धातु विभाग का अध्यक्ष।


11-स्वर्णध्यक्ष-पशुधन विभाग का अध्यक्ष।

12-शुल्काध्यक्ष-राजकीय धन जुर्माना अधिकारियों का अध्यक्ष।

13-विविताध्यक्ष-चारागाह ओ का अध्यक्ष।    

14-सुनाध्यक्ष -बूचड़खाने का अध्यक्ष ।

15-पण्याध्यक्ष-वाणिज्य व्यापार का अध्यक्ष।

16-सूत्राध्यक्ष-कपड़ा बुनने तथा उद्योग संचालन करने वाला प्रमुख।


       मौर्य साम्राज्य के पतन के अलग-अलग कारण  

मौर्य साम्राज्य के पतन के अलग-अलग विद्वानों के द्वारा अलग-अलग कारण बतलाए गए हैं। जिसके अंतर्गत। हरप्रसाद शास्त्री-के द्वारा कहा गया है कि अशोक की धार्मिक नीति साम्राज्य के पतन का कारण बनी। हेमचद्र राय चौधरी के द्वारा-

 कहा गया कि अशोक की शांतिप्रिय नीति ही उसके साम्राज्य के पतन का कारण बनी। डीएन झा के अनुसार मौर्य साम्राज्य के दुर्बल उत्तराधिकारी मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण बने। रोमिला थापर के अनुसार-शासन के केंद्रीकरण की प्रधानता थी। इसके लिए योग्य शासकों की आवश्यकता थी। जिससे साम्राज्य का विघटन हो गया था।

    ‌‌ इसके अतिरिक्त अशोक के बाद उसका पुत्र कुणाल गद्दी पर बैठा तथा उसका पुत्र चलो कश्मीर का तथा वीरसेन कंधार का शासक बना इन सभी ने मौर्य साम्राज्य की विशाल धरोहर को बचाने में अपनी असमर्थता पाई जिसके चलते मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहद्रथ की हत्या कर पुष्यमित्र शुंग ने शुंग वंश की स्थापना की तथा अनेक गाथाओं से प्रसिद्ध मौर्य साम्राज्य का पूर्णता दमन हो गया।,,,



                    


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