महान पहलवान "गामा"

          गामा पहलवान

समूचे विश्व में अनेक पेशेवर पहलवान हुए उन पहलवानों में एक नाम ऐसा है जिसने सारे विश्व में कुश्ती जगत में अपना परचम ऐसा हराया जिसकी याद आज भी समूचा विश्व उसी तरह करता है जैसे वह अपने जीवन काल में कुश्ती जीतकर याद किए जाते थे।
      
           आज हम इस महत्वपूर्ण लेख में भारत के विश्व प्रसिद्ध पहलवान जो गामा नाम से मशहूर हुए उनका संपूर्ण जीवन परिचय और उपलब्धियों का उल्लेख करेंगे।


            जीवन परिचय

गामा पहलवान का वास्तविक नाम गुलाम मोहम्मद बख्श था गामा पहलवान का जन्म 22 मई 1818 ईस्वी को अमृतसर पंजाब में हुआ था।
     कुछ परमाणु में गामा पहलवान का वास्तविक जन्म को लेकर मतभेद भी हुए हैं परंतु हमें उनके जन्म के विषय में ना उलझ कर उनकी विशिष्ट उपलब्धियों पर आज चर्चा करना है।

      बात उस काल की है जब कुश्ती के मामले में संपूर्ण विश्व में अमेरिका के जैविक को का नाम बहुत प्रसिद्ध था जेबी स्कोर कुश्ती में गामा ने चैंपियन बनकर संपूर्ण विश्व को अपने नाम से परिचित कराया था यह गामा के जीवन का सबसे विशिष्ट काल था।

    हम थोड़ी संक्षिप्त चर्चा गामा के परिवार की करे तो उनका परिवार अमृतसर के जब्बोंवाल गांव के एक कश्मीरी गुर्जर परिवार से था गामा के पूर्व भी उनके परिवार में दो प्रसिद्ध पहलवान हो चुके थे परंतु उन्होंने गामा के बराबर प्रसिद्धि नहीं पाई थी।

       गामा के दो विवाह हुए एक विवाह पाकिस्तान से तथा दूसरा गुजरात से हुआ था।
         गामा के बचपन में ही उनके पिता का साया उनसे छिन चुका था पिता की मृत्यु के बाद गामा का पालन पोषण उनके नाना नून पहलवान ने किया था बाद में नाना के निधन के बाद गामा के मामा जी ने गामा का पालन पोषण किया था गामा के मामा भी खुद एक अच्छे पहलवान थे ।
 गामा को प्रारंभ से ही कुश्ती के वातावरण में रहने का अनुभव प्राप्त हो गया था।

       
       

         

       पहलवानी करियर



गामा ने अपने पहलवानी करियर के शुरुआत महज़ 10 वर्ष की आयु से की थी । सन 1888 में जब जोधपुर में भारतवर्ष के बड़े-बड़े नामी-गिरामी पहलवानों को बुलाया जा रहा था, तब उनमें से एक नाम गामा पहलवान का भी था । यह प्रतियोगिता अत्याधिक थकाने वाले व्यायाम की थी । लगभग 450 पहलवानों के बीच 10 वर्ष के गामा पहलवान प्रथम 15 में आए थे । इस पर जोधपुर के महाराज ने उस प्रतियोगिता का विजयी उन्हें ही घोषित किया । बाद में दतिया के महाराज ने उनका पालन पोषण आरंभ किया ।

पहला सामना रहीम बख्श               सुल्तानी वाला से

गामा के करियर की महत्वपूर्ण शुरुआत 1895 से हुई जब गुजरांवाला के प्रसिद्ध पहलवान रहीम बख्श सुल्तानीवाला से उनका सामना हुआ । यह पहलवान मूल रूप में कश्मीर का रहने वाला था । इस द्वंद की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि एक तरफ रहीम बख्श सुल्तानीवाला जोकि एक अधेड़ उम्र का पहलवान था और जिसकी लंबाई तकरीबन 7 फीट की थी । और दूसरी ओर गामा पहलवान जिनकी उम्र 17 वर्ष की थी और ऊंचाई 5 फुट 7 इंच थी ।

 एक ओर एक बहुत ही अनुभवी पहलवान रहीम बख्श सुल्तानीवाला जो कि लगभग अपने करियर के अंतिम पड़ाव में था और दूसरी ओर एक बहुत ही नवयुवक जोशीला गामा पहलवान जिसने अभी-अभी ही पहलवानी शुरु की थी ।

 इस द्वंद्व को बहुत चर्चा में लाया गया । इस द्वंद की उस समय अक्सर चर्चा होती थी । बड़े-बड़े लोग इस द्वंद को देखने के लिए आए थे । यह द्वंद बहुत समय तक चला । शुरुआत में तो गामा पहलवान रक्षणार्थ लड़ते रहे, परंतु दूसरी पाली में आक्रमणकारी हो गए । दोनों पहलवानों के बीच घमासान द्वंद्व हुआ ।

 इस बीच गामा पहलवान की नाक,मुंह और सिर से खून बहने लगा । फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और वे लगातार लड़ते रहे । आखिर में यह मैच बराबरी पर रोक दिया गया । परंतु इसी द्वंद्व से गामा पहलवान का नाम पूरे देश में विख्यात हो गया ।

      यह दंगल गामा के जीवन का टर्निग प्वाइंट था।


        लंदन में होने वाले टूर्नामेंट

लंदन में होने वाले टूर्नामेंट से पहले गामा पहलवान के सामने एक और नई बाधा खड़ी हो गई, जब उन्हें केवल यह कहकर मना कर दिया कि उनकी लंबाई बहुत छोटी है ।

 इस पर उन्होंने यह घोषणा कर दी वे केवल आधे घंटे के अंदर ही किन्ही तीन पहलवानों को जो कि किसी भी भार-वर्ग के हो, उन्हें हरा कर अखाड़े से फेंक सकते हैं । शुरू में तो सबको यही लगा कि यह एक अफ़वाह है और काफी समय तक कोई नहीं आया । परंतु बाद में गामा पहलवान ने एक और शर्त रखी जिसमें उन्होंने फ्रैंक गॉच और स्टैनिस्लॉस ज़ैविस्को को चुनौती दी, कि वे या तो उन्हें इस द्वंद्व में हरा देंगे अथवा स्वयं हारकर उल्टा उन्हें इनाम की राशि देकर वापस घर चले जाएंगे ।

 इस पर सबसे पहले बेंजामिन रोलर नामक अमेरिकी पहलवान ने उनकी चुनौती स्वीकार की । परंतु गामा ने पहली पाली में ही उसे 1 मिनट 40 सेकंड में ही धरती से चिपका दिया और दूसरी पाली में 9 मिनट 10 सेकंड में ही उसे धराशाई कर दिया । अगले दिन गामा पहलवान ने 12 पहलवानों को मात दी और टूर्नामेंट में प्रवेश पाया ।


स्टैनिस्लॉस ज़ैविस्को के साथ मैचसंपादित करें

इन्हें विश्व-चैंपियन स्टैनिस्लॉस ज़ैविस्को के साथ हुए मैच के लिए बहुत जाना जाना जाता है । ज़ैविस्को के साथ इनका मैच 10 सितंबर 1910 निर्धारित हुआ था । ज़ैविस्को को तब विश्वप्रसिद्ध पहलवानों में से एक माना जाता था । उन्होंने उन गामा पहलवान कि यह चुनौती स्वीकार कर ली, जिन्हें फ्रैंक गॉच जैसा महान पहलवान भी हरा ना सका । जिस दिन गामा पहलवान और ज़़ैविस्को का मैच हुआ, वह दिन टूर्नामेंट के फाइनल्स का दिन था । इस मैच की इनाम- राशि थी ढाई सौ यूरो और जॉन बुल बेल्ट । केवल 1 मिनट के अंदर ही गामा पहलवान ने ज़़ैविस्को को धराशाई कर दिया, वह भी पूरे 2 घंटे और 35 मिनट के लिए ।कुछ समय के लिए ज़़ैविस्को उठता था, परंतु बाद में फिर उसी दशा में धराशाई कर दिया जाता था । उसने अपना रक्षणार्थ दांव लगाया जिससे कि वह गामा पहलवान इस शक्ति को रोक सके, परंतु अंत में यह 3 घंटे तक चलने वाला मैच बराबरी पर ही रोक दिया गया और इससे ज़ैविस्को के फैन बेहद निराश हुए । फिर भी ज़़ैविस्को का नाम उन पहलवानों में से लिया जाता है जो गामा पहलवान के द्वारा नहीं हराया जा सके । उन दोनों का एक और बार मैच होने वाला था जिसकी तिथि 17 सितंबर 1910 निर्धारित की गई थी परंतु ज़ैविस्को किसी कारणवश मैच में नहीं आ पाए ।इस कारण से गामा पहलवान को ही उस मैच का विजेता घोषित कर दिया गया और उन्हें इनाम राशि के साथ-साथ जॉन बुल बेल्ट के साथ भी सम्मानित किया गया । इस सम्मान के साथ ही उन्हें रुस्तम-ए-ज़माना के खिताब से भी नवाज़ा गया । परंतु इस सम्मान की खासियत यह थी कि इस मैच में उन्हें बिना लड़े ही विजय मिली।


अमेरिकी और यूरोपीय पहलवानों के विरुद्ध द्वंद्वों की विजययात्रासंपादित करें

अपनी इस विजय यात्रा के दौरान गामा ने कई प्रसिद्ध और आदरणीय पहलवानों को हराया जैसे कि:-

  1. संयुक्त राज्य के डॉक्टर बेंजामिन रोलर
  2. स्विट्जरलैंड के मॉरिस डेरियस
  3. स्विट्जरलैंड के जॉन लेम
  4. स्वीडन के जेस पीटरसन (विश्व चैंपियन)
  5. टैरो मियाके (जापानी जूडो चैंपियन)
  6. जॉर्ज हेकेनस्किमित
  7. संयुक्त राज्य के फ्रैंक गॉच

रहीम बक्श सुल्तानीवाला से अंतिम सामनासंपादित करें

इंग्लैंड से लौटने के तुरंत बाद ही गामा पहलवान का सामना रहीम बक्श सुल्तानी वाला से अलाहाबाद में हुआ । काफी देर तक चलने वाले इस द्वंद्व में अंततः गामा पहलवान को विजय प्राप्त हुई और साथ ही साथ रुस्तम-ए-हिंद का खिताब भी जीत लिया ।जीवन में बहुत समय बाद एक साक्षात्कार में जब उनसे यह पूछा गया कि गामा पहलवान को सबसे मुश्किल टक्कर किसने दी है तो उन्होंने कहा "रहीम बक्श सुल्तानीवाला" ।

             ज़ैविस्को से पुनः सामना

रहीम बक्श सुल्तानीवाला पर विजय प्राप्त करने के बाद सन 1916 में गामा पहलवान ने पहलवान पंडित बिद्दु (जो कि उस समय भारत के जाने-माने पहलवानों में से एक थे) का सामना किया और उन पर विजय प्राप्त की ।

सन 1922 में वेल्स के राजकुमार भारत के दौरे पर आए और उन्होंने गामा पहलवान को चांदी की एक गदा भेंट की ।

जब 1927 तक गामा पहलवान को चुनौती देने वाला कोई भी पहलवान नहीं बचा तो यह घोषणा हुई की गामा और ज़ैविस्को फिर एक बार आमना- सामना करेंगे । उनकी मुलाकात 1928 में पटियाला में हुई । अखाड़े में आते ही ज़ैविस्को ने अपना सुदृढ़ शरीर और बड़ी-बड़ी मांसपेशियां दिखाई, परंतु गामा पहलवान पहले से काफी दुबले-पतले लग रहे थे । फिर भी गामा पहलवान ने केवल 1 मिनट में ही ज़ैविस्को को धराशाई कर दिया जिससे उन्हें भारतीय-विश्व स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता का विजयी घोषित कर दिया गया और ज़ैविस्को ने भी उन्हें बाघ कहकर संबोधित किया ।

जब तक गामा पहलवान 48 वर्ष के हुए तब तक वह भारत के महान पहलवानों में से एक गिने जाने लगे ।

बलराम हीरामण सिंह यादव के साथ द्वंद 

ज़ैविस्को पर विजय प्राप्त करने के बाद गामा ने जेज़ पीटरसन पर 1929 को विजय प्राप्त की । यह द्वंद डेढ़ मिनट चला । यह अंतिम द्वंद था जो गामा ने अपने करियर में लड़ा । सन 1940 को हैदराबाद के निज़ाम ने गामा को निमंत्रण दिया जिसमें गामा ने सभी पहलवानों को हरा दिया । निज़ाम ने उसके बाद पहलवान बलराम हीरामण सिंह यादव को गामा से सामना करने के लिए भेजा, जोकि स्वयं कभी भी नहीं हारा था । यह द्वंद बहुत समय तक चला परंतु इसका कोई भी निष्कर्ष नहीं निकला । बलराम हीरामण सिंह यादव उन पहलवानों में से था जिनका सामना करना गामा के लिए भी बहुत मुश्किल था ।

भारत की स्वतंत्रता के बाद 1947 को गामा पहलवान पाकिस्तान की तरफ चले गए । जिस समय हिंदू-मुसलमान भाई आपस में लड़ रहे थे, तब भीड़ से कितने ही हिंदू भाइयों को गामा ने बचाया था । अंततः सन 1952 तक गामा ने संन्यास ले लिया । संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपने भतीजे भोलू पहलवान को पहलवानी सिखाई, जिन्होंने लगभग 20 साल तक पाकिस्तान में होने वाले सभी कुश्ती प्रतियोगिताओं में भाग लिया ।



              मृत्यु

गामा पहलवान की मृत्यु 23 मई 1960 को लाहौरपाकिस्तान में हुई। वे काफी समय से बीमार थे ।उनकी बीमारी का सारा खर्चा पाकिस्तान सरकार ने उठाया और उन्हें कुछ जमीनें भी दी थीं।

        विरासत

जाने-माने कराटे योद्धा और अभिनेता ब्रूस ली गामा पहलवान के बहुत बड़े फैन थे । वे प्रायः अखबार में उन पर लिखे हुए लेख पढ़ा करते थे कि किस तरह से गामा पहलवान ने अपनी शक्ति का विस्तार किया, अपने शरीर को सुदृढ़ बनाया और किस तरह से उन्होंने अपनी शक्ति में वृद्धि की । इन सभी को ब्रूस ली ने भी अपने जीवन में अपनाया और वह भी कसरत के समय दंड बैठक लगाया करते थे ।


       तो ऐसे थे हमारे गामा पहलवान जिनको आज समूचा विश्व याद करता है।




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